वैदिक ज्योतिष की विशालता में भारतवर्ष के अनेक ऋषियों एवं विद्वानों का योगदान रहा है l अनेक पद्धितियां विकसित हुई किन्तु इन सब में समान रूप से उल्लेखनीय बात पंचांगीय...
इल्मी सामुद्रिक लाल किताब प्रस्तुत पुस्तक लाल किताब के सन १९४२ के संस्करण " इल्मे सामुद्रिक की लाल किताब " का हिन्दी अनुवाद है l इस संस्करण में पंडित जी...
अंक ज्योतिष अंको की गणित का ज्योतिष से गहरा सम्बन्ध है l ज्योतिष का काम अंको के बिना नहीं चलता l 'अंक ज्योतिष ' या न्यूमेरोलॉजी मुलत: गणित की संख्या...
प्राचीन त्रैलोकिय ज्योतिष शास्त्र यह त्रैलोकिय ज्योतिष शास्त्र ग्रन्थ अति प्राचीन है I 700 वर्ष पहले पूज्य श्री हेमप्रभसूरीजी नाम के जैनाचार्य हुए , उन्होंने यह उत्तम ग्रन्थ की रचना...
ग्रन्थ की विषयवस्तु - इस ग्रन्थ का नाम प्रश्न मार्ग है l अस्तु, यह ग्रन्थ देवज्ञ को जीवन से सम्बन्धित सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों के समाधान का मार्ग प्रशस्त करता है l यह समाधान जातकशास्त्र, प्रश्नशास्त्र,मुहुर्तशास्त्र, स्वरोदयविज्ञान, आयुर्वेद, प्राकृतिक लक्षण, सहिंताज्योतिष, शकुनशास्त्र, स्वप्नशास्त्र, व्यक्ति की भाव - भंगिमाएँ, उसकी चेष्टाएँ तथा उसके मनोविज्ञान पर आधारित होता है l अस्तु:,...
ऋषि मन्त्रेश्वर विरचित 'फलदीपिका ' एक अनमोल वैदिक ज्योतिषीय ग्रन्थ है, जिसमें लयबद्ध संस्कृत में लिखित 28 अध्याय हैं। इस ग्रन्थ का ज्योतिषीय शास्त्रों में बहुत उच्च स्थान है । फलदीपिका में...
लाल किताब लाल किताब वैदिक ज्योतिष का एक ऐसा सरलतम माध्यम है जिसकी सहायता से प्रत्येक व्यक्ति स्वयं और दूसरे लोगो के बारे में आसानी से भुत, भविष्य और वर्तमान...
फलित ज्योतिष में लघुपाराशरी का महत्वपूर्ण स्थान है I इस लघु ग्रन्थ में आचार्य ने फलित के ऐसे अनेक गूढ़ रहस्यों को भर दिया है, जो अन्यत्र दुर्लभ है I यही कारण है, ज्योतिष जगत में लघुपराशरी की लोकप्रियता आज तक बानी हुई है I इस ग्रन्थ का स्वाध्याय जितना अधिक किया जाता है उतने ही रहस्य खुलते जाते है ईं इसलिए अनेक टिकाओ के बाद भी इस ग्रन्थ पर नवीन टीका की आवष्यकता प्रतीत होती रहती है I लघुपाराशरी के कुछ सिद्धान्त यह सिद्ध कर देते है कि आचार्य ने ग्रहों तथा द्वादश भावो के गुणधर्मो को भलीभांति समझ कर उनके स्वभाव एवं प्रभावों का विवेचन किया है I यदि ऐसा नहीं होता तो .......
' न दिशन्ति शुभं निर्णा सौम्या: केन्द्रधिपा यदि I
क्रूराशुवेदशुभम होते प्रबलाश्रोतरोतरम' II
- यह कहने की आवष्यकता नहीं होती I केंद्र को सर्वत्र शुभ कहा गया है I पराशर ने भी इनका शुभत्व स्वीकार किया है किन्तु इनके स्वामित्व को प्रभावहीन बतलाया है I आचार्य के मत से केन्द्रेश तभी प्रभावशाली होते है जब उनका सम्बन्ध त्रिकोण से हो I यह तथ्य व्यवहार से भी सिद्ध होता है I इस प्रकार अनेक स्थल है जिनमे अन्य सिद्धान्तो की अपेक्षा तथयपरक नवीनता दृश्य होती है I इन तथ्यों का उद्द्घाटन अनेक विद्वानों ने अपनी टिकाओ में किया है I
भावकुतूहलम
'भावकुतूहलम' ज्योतिष जगत में एक जाना पहचाना ग्रन्थ है I ज्योतिष के जातक खंड में विधमान ग्रन्थों की शृंखला की यह एक अनुपम और महत्वपूर्ण कड़ी है I इसके प्रणेता पंडित जीवनाथ मिथिला के मैथिल ब्रहामण थे I इनके पिता ज्योतिविर्द पंडित शम्भूनाथ तथा पितामह पंडित करुणाकर प्रभृत अपने समय के विख्यात देवज्ञ थे I
इस ग्रन्थ के लघुकलेवर में ज्योतिष सम्बन्धी अनेक महत्वपूर्ण जानकारियो को समायोजित कर इस ग्रन्थ की महत्ता और गुणवत्ता की वृद्धि आचार्य ने की है I यह सम्पूर्ण ग्रन्थ सत्रह अध्यायों से सुसज्जित है , जिसमे सामान्यत: ज्योतिविषयक महत्वपूर्ण जानकारियाँ संगृहत है I
भावकुतूहलम के अध्यायों में वर्णित विषय वास्तु के अध्ययन से सामान्य व्यक्ति भी फलादेश कर सकने में समर्थ हो सके इसलिए प्रस्तुत हिंदी टिका में आवश्यकता के अनुरूप विशेष चर्चा के साथ-साथ आवश्यकतानुसार उदाहरण भी दिए गए है I आशा है की इस विषय के जिज्ञासु प्रस्तुत संस्करण के अध्ययन से लाभान्वित होंगे I
व्यावहारिक अंक ज्योतिष अंक ज्योतिष में गणित के नियमो का व्यावहारिक उपयोग करके मनुष्य के अस्तित्व के विभिन्न पहलुओं पर नजर डाली जा सकती है l व्यक्ति के जन्म के...