ग्रन्थ की विषयवस्तु - इस ग्रन्थ का नाम प्रश्न मार्ग है l अस्तु, यह ग्रन्थ देवज्ञ को जीवन से सम्बन्धित सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों के समाधान का मार्ग प्रशस्त करता है l यह समाधान जातकशास्त्र, प्रश्नशास्त्र,मुहुर्तशास्त्र, स्वरोदयविज्ञान, आयुर्वेद, प्राकृतिक लक्षण, सहिंताज्योतिष, शकुनशास्त्र, स्वप्नशास्त्र, व्यक्ति की भाव - भंगिमाएँ, उसकी चेष्टाएँ तथा उसके मनोविज्ञान पर आधारित होता है l अस्तु:,...
ऋषि मन्त्रेश्वर विरचित 'फलदीपिका ' एक अनमोल वैदिक ज्योतिषीय ग्रन्थ है, जिसमें लयबद्ध संस्कृत में लिखित 28 अध्याय हैं। इस ग्रन्थ का ज्योतिषीय शास्त्रों में बहुत उच्च स्थान है । फलदीपिका में...
फलित ज्योतिष में लघुपाराशरी का महत्वपूर्ण स्थान है I इस लघु ग्रन्थ में आचार्य ने फलित के ऐसे अनेक गूढ़ रहस्यों को भर दिया है, जो अन्यत्र दुर्लभ है I यही कारण है, ज्योतिष जगत में लघुपराशरी की लोकप्रियता आज तक बानी हुई है I इस ग्रन्थ का स्वाध्याय जितना अधिक किया जाता है उतने ही रहस्य खुलते जाते है ईं इसलिए अनेक टिकाओ के बाद भी इस ग्रन्थ पर नवीन टीका की आवष्यकता प्रतीत होती रहती है I लघुपाराशरी के कुछ सिद्धान्त यह सिद्ध कर देते है कि आचार्य ने ग्रहों तथा द्वादश भावो के गुणधर्मो को भलीभांति समझ कर उनके स्वभाव एवं प्रभावों का विवेचन किया है I यदि ऐसा नहीं होता तो .......
' न दिशन्ति शुभं निर्णा सौम्या: केन्द्रधिपा यदि I
क्रूराशुवेदशुभम होते प्रबलाश्रोतरोतरम' II
- यह कहने की आवष्यकता नहीं होती I केंद्र को सर्वत्र शुभ कहा गया है I पराशर ने भी इनका शुभत्व स्वीकार किया है किन्तु इनके स्वामित्व को प्रभावहीन बतलाया है I आचार्य के मत से केन्द्रेश तभी प्रभावशाली होते है जब उनका सम्बन्ध त्रिकोण से हो I यह तथ्य व्यवहार से भी सिद्ध होता है I इस प्रकार अनेक स्थल है जिनमे अन्य सिद्धान्तो की अपेक्षा तथयपरक नवीनता दृश्य होती है I इन तथ्यों का उद्द्घाटन अनेक विद्वानों ने अपनी टिकाओ में किया है I
होराशास्त्रम (बृहज्जातकम)
होराशास्त्रम विञ्जनों द्वारा प्रतिपादित शब्दशास्त्रन्यायशास्त्रदि अनेक शास्त्रों का बहुत बार अध्ययन करने पर भी जो होरा शास्त्ररूपी महासमुद्र को तैरने में सक्षम नहीं हो पाते उन लोगो के लिए नौका स्वरुप इस ग्रन्थ को मै बनाता हूँ, जो अल्प शब्द और बहुत अर्थो से युक्त है I
अहरोत्र का दूसरा नाम होरा होता है I अहोरात्र के पूर्व वर्ण 'अ' और अंत्यवर्ण 'त्र ' के लोप होने से बीच के 'होरा' ये दो अक्षर बाकी रह जाते है I होरा 'लग्न ' को भी कहते है I यह 'होरा' मनुष्य के पूर्व जनमाजिर्त शुभाशुभ कर्मफल को प्रकाशित करता है I
दो मछलियों में परस्पर एक के मुख में दूसरे की पूँछ मिलाकर जो स्वरूप बनता है वह मीन राशि का स्वरूप है I कंधे पर घड़े रखे हुए पुरुष के जैसा कुंभ राशि का स्वरूप है I मिथुन राशि का स्वरूप स्त्री - पुरुष जोड़ा है जिसमे पुरुष के हाथ में गदा तथा स्त्री के हाथ में वीणा है I धनुराशि का कमर से ऊपर मनुष्य का शरीर जो हाथ में धनुष वाण लिए है और कमर के निचे घोड़े का शरीर है I बड़े - बड़े सिंहो से युक्त हरिनमुख तथा मगरमच्छ शरीर सदृशं मकर का स्वरूप है I
इस ग्रन्थ में 'रुद्रविवर्णी' संस्कृत टिका के साथ - साथ 'प्रज्ञावृद्धिनी' हिंन्दी टिका भी दी गई है जिसमे सरल शब्दों में ग्रन्थ के दुरूह स्थलों को समझाया गया है i साथ ही सारणी एवं चक्रो के द्वारा योगो के स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया गया है कि छात्रों को कम समय में ही विषय का ज्ञान हो सके i
Brihat Samhita Vol 2 (Hindi) by SC Mishra बृहत् संहिता Vol 2 ज्योतिष के तीनो स्कन्धों में संहिता शाखा विद्वानों व् आचार्यो का परीक्षा स्थान है l संहिता ज्ञान के...
Brihat Samhita Vol 1 (Hindi) by SC Mishra बृहत् संहिता - सुरेश चंद्र मिश्रा ज्योतिष के तीनो स्कन्धों में संहिता शाखा विद्वानों व् आचार्यो का परीक्षा स्थान है l संहिता ज्ञान...