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Asha ka Sansaar [Hindi] by
Publisher: Oshodhara
आशा का संसार
आशा धागा है जिसके सहारे हम जीते है i बढ़ा महीन धागा है, कभी भी टूट सकता है लेकिन टूटता नहीं I मजबूत से मजबूत जंजीर बन गया है I एक तरफ से टूटता है तो हम दूसरी तरफ से संभाल लेते है, अगर संसार से भी टूट जाता है तो हम मोक्ष की आशा करने लगते है, स्वर्ग की आशा करने लगते है ..आशा जारी रहती है I आशा संसार से भी बड़ी है I
जापान में हुए एक बड़े कवि ईशा की पत्नी मर गई, बहुत दुखी हुआ I फिर उसकी बेटी मर गई I ३३ साल की उम्र तक उसके पांचो बच्चे मर गए , वह अकेला रह गया I बड़ी पीड़ा में था I सो न सके रात, दिन होश न रहे - बस एक ही बात पूछे कि ' संसार में इतना दुःख क्यों है ?'
किसी ने कहा ' मंदिर में एक फकीर है , शायद वह तुम्हारी समस्या हल कर दे I '
वह मंदिर गया I फकीर बोला 'दुःख क्यों है ? यह बात ही व्यर्थ है I पांच बच्चे गए, पत्नी गई, ; अब तुम समय खराब मत करो I जीवन तो धारा के पत्ते पर ठहरी ओस क़ी भांति है - अब गया , तब गया ' ईशा घर लौट आया I बात तो जंची I जीवन ऐसा ही है I उसने हाइकू, एक छोटी सी कविता लिखी :-
Life is a Drew Drop.
Yes, I am convinced perfectly – Life is a Dew Drop. But yet, And yet.......
निश्चित ही, एक ओस की बूंद सा है यह जीवन
हां, मैं बिल्कुल राजी हु कि जिंदगी है ओस-कण
मगर फिर भी, फिर भी .........
यह 'फिर भी' आशा है i समझ में आ जाए, तो भी आशा समझने नहीं देती i बुद्धि पकड़ ले, तो भी प्राण से सम्बन्ध नहीं जुड़ता i विचार में झलक जाए , तो भी भावना में नहीं झलकता और आशा अपना जाल बन जाती है i
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