Pt. Dhundiraj's JATAKA BHARNAM Jataka Bharnam is a detailed classic text on Vedic Astrology. The author has presented the classic in a very lucid and simple style. Besides, the special...
ऋषि मन्त्रेश्वर विरचित 'फलदीपिका ' एक अनमोल वैदिक ज्योतिषीय ग्रन्थ है, जिसमें लयबद्ध संस्कृत में लिखित 28 अध्याय हैं। इस ग्रन्थ का ज्योतिषीय शास्त्रों में बहुत उच्च स्थान है । फलदीपिका में...
मूल संस्कृत श्लोको की हिंदी व्याख्या व् समालोचनात्मक विवेचन से सुभूषित यह रचना बड़े मुहर्त ग्रंथो में भीतर पैठने से पूर्व नए विधाथिर्यो को अभ्यास करके विषय को समझने के लिए बहुत उपयोगी है I लगभग ४०० वर्षे पहले दक्षिण भारत में लिखी गई श्री विठ्ठलदीक्षित की इस रचना में आप पाएंगे -
१. मुहर्त विषय की बहुत सरल युक्तियाँ
२. विषय याद रखने की बहुत सुविधाजनक पद्धति I
३ संक्षिप्त लेकिन सारगर्भित विवेचना I
४ बड़े मुहर्तग्रंथो का व्यावहारिक निचोड़ I
५ सवा पांच सौ श्लोको में समस्त उपयोगी विषय I
६ पहली वार हिंदी व्याख्या सहित संस्करण ई
७ मुहर्त सम्बन्ध में प्रवेश करने का द्वार I
८ दर्शनीय प्रस्तुति, रमणीय कलेवर, आकर्षक व् संग्रहणीय I
४०० वर्षे प्राचीन अनुपम ग्रन्थ हिन्दी व्याख्या सहित पहली बार I
फलित ज्योतिष में लघुपाराशरी का महत्वपूर्ण स्थान है I इस लघु ग्रन्थ में आचार्य ने फलित के ऐसे अनेक गूढ़ रहस्यों को भर दिया है, जो अन्यत्र दुर्लभ है I यही कारण है, ज्योतिष जगत में लघुपराशरी की लोकप्रियता आज तक बानी हुई है I इस ग्रन्थ का स्वाध्याय जितना अधिक किया जाता है उतने ही रहस्य खुलते जाते है ईं इसलिए अनेक टिकाओ के बाद भी इस ग्रन्थ पर नवीन टीका की आवष्यकता प्रतीत होती रहती है I लघुपाराशरी के कुछ सिद्धान्त यह सिद्ध कर देते है कि आचार्य ने ग्रहों तथा द्वादश भावो के गुणधर्मो को भलीभांति समझ कर उनके स्वभाव एवं प्रभावों का विवेचन किया है I यदि ऐसा नहीं होता तो .......
' न दिशन्ति शुभं निर्णा सौम्या: केन्द्रधिपा यदि I
क्रूराशुवेदशुभम होते प्रबलाश्रोतरोतरम' II
- यह कहने की आवष्यकता नहीं होती I केंद्र को सर्वत्र शुभ कहा गया है I पराशर ने भी इनका शुभत्व स्वीकार किया है किन्तु इनके स्वामित्व को प्रभावहीन बतलाया है I आचार्य के मत से केन्द्रेश तभी प्रभावशाली होते है जब उनका सम्बन्ध त्रिकोण से हो I यह तथ्य व्यवहार से भी सिद्ध होता है I इस प्रकार अनेक स्थल है जिनमे अन्य सिद्धान्तो की अपेक्षा तथयपरक नवीनता दृश्य होती है I इन तथ्यों का उद्द्घाटन अनेक विद्वानों ने अपनी टिकाओ में किया है I