जातकदेशमार्ग
भारतीय ज्योतिषशास्त्र में तीन स्कन्धों के जातकस्कन्ध शीर्ष पर है I जन्मपत्रिका का निर्माण तथा फलादेश इसी स्कंध के आधार पर है I जातकशास्त्र ही होराशास्त्र भी कहलाता है एवं इसी शास्त्र पर संस्कृत में श्रीपद्धमनाभीसोम्याजीप्रणीत 'जातकदेशमार्ग' भी एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है I 'जातकदेशमार्ग' में लगभग ५१२ संतुलित श्लोक है I सम्पूर्ण ग्रन्थ में सत्रह अध्याय जिन्हें संज्ञाप्रकरण, विवेक प्रकरण, अरिष्ट, अरिष्ट भंग, आयुविर्भाग, आयु योग, मरणनिर्णय, योग, अष्टकवर्ग, भाव विचार, गोचर फल, दशापहार, भार्याविचार, आनुकूल्य, पुत्र- चिंता, संतान चिंता तथा मिश्रकाध्याय नाम दिए गए है I
इस ग्रन्थ में ऐसी अनेक विलक्षण बाते है जो कि उत्तरी भारत में लिखे गए ग्रंथो में उपलब्ध नहीं होती है I ग्रन्थ में बालारिष्टो, अरिष्टभंग तथा आयुयोगो का अति उत्तम विवेचन सौष्ठवपूर्वक किया गया है I जनमाह के नो विशेष दोषो के महत्वपूर्ण प्रभाव का विवेचन एवं मांदी (मुलिक) तथा यमकंटक जैसे उपग्रहों की फलित में क्या महत्ता है ? इसका दिग्दर्शन किया गया है I संतान एवं विवाह समय के ज्ञान एवं फलादेश के लिए अनेक प्रकार के स्फुटो का गणित तथा फलित विस्तारपूर्वक समझाया गया है I
त्रिस्कन्धात्मक ज्योतिष शास्त्र में होरास्कन्ध के अंतर्गत जातक, ताजिक तथा प्रश्न - ये तीनो समाविष्ट हैं l जातक के दो भेद हैं - पुरुष जातक तथा स्त्रीजातक l जहाँ तक जातक के फल कथन की बात है तो सामान्य रूप से फल , पुरुष एवं स्त्रियों के लिए एक जैसा ही होता है; किन्तु नारी की स्थिति प्राकृतिक एवं सामाजिक दृष्टि से कुछ अतिविशिष्ट भी है, जिसके कारण स्त्रियों की जन्मकुंडली के फलकथन - हेतु स्वतंत्र ग्रंथों का प्रणयन भी प्राचीन काल से होता आ रहा है l यही कारण है कि जन्मपत्रिका - निर्माण करने वाले ज्योतिषी फलकथन हेतु स्त्रीजातक विषय पर किसी स्वतंत्र ग्रन्थ की आवश्यकता का अनुभव करते हैं l प्राचीन काल में स्त्रीजातक विषय से संबंद्ध जो ग्रन्थ थे, वे इस्लामी आक्रांताओं द्वारा अन्य संस्कृत वाङ्गमय के साथ ही नष्ट कर दिए गए थे l उनमे से आज केवल यवनाचार्य - विरचित स्त्रीजातक मात्र ही उपलब्ध है l