लाल किताब एक ऐसी दुर्लभ प्राचीन पुस्तक है जिसमे राशि , भाव, ग्रह और नक्षत्रों के बारे में सूत्रों के माध्यम से दुर्लभ भविष्यनिधि को समाहित किया
गया है। प्रस्तुत पुस्तक “असली प्राचीन लाल किताब के अनुभूत टोटके एवं उपाय” पं. रूपचंद शर्मा कृत प्राचीन और अप्राप्य ग्रंथ “लाल किताब' के सूत्रों
पर आधारित है। ज्योतिष जगत की इस अनुपम कृति को गोल्ड मेडलिस्ट डॉ. राधेश्याम मिश्र 'परमहंस” ने गहन अध्ययन और विश्लेषण के बाद सरल
भाषा में प्रस्तुत किया है।
लाल किताब से कष्ट - निवारण ग्रह शांति कर सुख - सौभाग्य और समृद्धि प्रदान करने वाली अति विशिष्ट जानकारी लाल किताब को ज्योतिष शास्त्र का एक अनूठा ग्रन्थ माना...
ललिता सहस्त्रनाम (कुण्डलिनी संकेत विधा ) माँ ललिता सौंदर्य, अनुग्रह और आनंद की साक्षात् मूर्ति है l उनमे अगाध श्रद्धा और निष्ठां रखने वाले में भी ये गुण स्वभावत: ही...
ललितासहस्ननाम ब्रह्माण्डपुराण का शीर्षक “ललितोपाख्यान' के रूप में है। ललितासहस्ननाम मूल रूप में कई स्थानों से प्रकाशित हुआ है। सर जान वुडरफ विल्सन ( एवलोन ) ने तांत्रिक ग्रन्थों में इसका अनेक स्थानों पर उल्लेख किया है। संस्कृत के अतिरिक्त अंग्रेजी में इसका भाष्य श्री आर० अनन्तकृष्ण शास्त्री ने किया है। तमिल में भी इसका भाष्य है। संस्कृत में इसकी परिभाषा 'सौभाग्यभास्कर' नाम से महान् मनीषी भास्करराय ने की है। सभी भाष्यों का आधार भास्कर- राय-प्रणीत सौभाग्यभास्कर है। इस स्तोत्र को अत्यधिक लोकप्रिय बनाने का श्रेय इन्हें ही है। इन्हीं का दीक्षा नाम भासुरानन्दनाथ है। प्रस्तुत हिन्दी व्याख्या पूर्णतया इन्हीं के भाष्य पर आधारित है । सर्वप्रथम 'सौभाग्यभास्कर का प्रकाशन निर्णयसागर प्रेस, बम्बई से हुआ था। “सौभाग्यभास्कर' का रचना काल संवत् १७८५ माना जाता है और इसे भास्कर राय ने बनारस में पूर्ण किया था ।
ललितासहस्ननाम में कुल मिलाकर ३२० (तीन सौ बीस ) श्लोक हैं और ये तीन भागों में विभाजित हैं। पूर्व भाग में ५१, द्वितीय भाग नामावली में १८२8 तथा उत्तर भाग फलश्रुति में ८६ श्लोक हैं । ब्रह्माण्ड- पुराण के उत्तरखण्ड में भगवान् हयग्रीव और महांमुनि अगस्त्य के संवाद .के रूप में इसका विवेचन मिलता है। यह पुराण महर्षि वेदव्यास रचित १८वाँ और अन्तिम पुराण है। इसका अवलोकन करने से स्पष्ट हो जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने इस पुराण में तंत्र को अत्यधिक महत्त्व दिया है।
.. ललितासहस्ननाम के पूर्व भाग, नामावली तथा फलश्रुति में अनेक बारश्रीविद्या और श्रीचक्र का उल्लेख है। सहस्ननाम के पारायण में भी श्रीविद्या
श्रीचक्र की उपासना पर बल दिया गया है । इसमें तनिक भी सन्देह नहीं के यह श्रीविद्या का मुख्य स्तोत्र है। पूर्द भाग तथा फलश्रुति के अनेक इसका स्पष्ट उल्लेख है। नामावली में देवी के जो नाम आये हैं उनमे चक्रराज की देवियों तथा अधिष्ठात्रियों के नाम
लक्ष्मी प्राप्ति 111 स्वर्णिम प्रयोग शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो अपने जीवन में लक्ष्मी को समाहित नहीं करना चाहता होगा I यदि आप धन - संपदा के स्वामी...
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माँ कामाख्या की तांत्रिक साधना भारतीय वांगमय में कहा है कि कामाख्या देवी का साधक सम्पूर्ण जगत को जीतकर अपने वश में कर लेता है तथा मन्त्रबल से त्रिभुवन में...