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उड्डीश तंत्र
रावण कृत उड्डीश तन्त्र देखने पर यह स्पष्ट हो जाता है की तन्त्र कोई आज कि खोज नहीं है बल्कि यह तो प्रभु प्रसाद प्राप्त हुई 'ज्ञान गंगा' है जो अनादिकाल से प्रवाहित हो रही है l जगत के सृष्टिकर्ता ने सृष्टिकाल के शुभारम्भ में ही जगत में स्थित जीवो के कल्याण, भोग तथा पुरुषार्थ की प्राप्ति हेतु एक ज्ञान गंगा प्रवाहित की थी जिसे प्रभु ने पाँच विभिन्न स्रोतों में विभक्त कर दिया था l यह स्रोत 'ऊर्ध्व, पूर्व, उत्तर, पश्चिम तथा दक्षिण, नाम से जगत में सुप्रसिद्ध है l
सम्पूर्ण तन्त्र साहित्य का पठन करने पर यह तथ्य पूर्ण रूपेण स्पष्ट हो जाता है कि देवाधिदेव महादेव ने ही समस्त तंत्रो का प्रकाश किया था l इस तथ्यानुसार यह स्वीकार कर लेने में अतिशयोक्ति न होगी कि शिव ही पञ्च स्रोतों के दाता है l
प्रस्तुत पुस्तक की विषय सामग्री का शोध अनेक हिन्दी तथा बंगला ग्रंथो के प्रकाशित तथा अप्रकाशित ग्रंथो से लिया गया है l