shadvargphalaprakash
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Shadvargphalaprakash [Sanskrit]

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DESCRIPTION

भूमिका

यदुपचितसन्यजन्मनि शुभाशुभं॑ तस्य कर्मणः  प्राप्तिम ।

व्यज्ञयति शास्त्रमेतत्तमसि  द्रव्याणि दीप इव ॥

फलित-ज्योतिष में षड्वर्ग-कुण्डलियों के फलादेश का स्थान बहुत ऊंचा  है । इन कुण्डलियों से जातक के धन, भ्राता , स्त्री पुत्र एवं माता-पिता आदि के विषय में अच्छा प्रकाश  पड़ता हूं । परन्तु बहुत से जन्मपत्र-निर्माता ज्योतिषी लोग  जन्म-पत्रियों में षड़्वर्ग की कुण्डलियों के चक्र तो बड़े सुन्दर मनमोहक बना देते हैं, परन्तुउनके सूक्ष्म चमत्कारी फलादेश लिखने में उनकी लेखनी रुक जाती है, जिससे जन्म-पत्र्री  का महत्त्व घट जाता है ; अनेकों जन्मपत्रनिर्माता ज्योतिषी यह नहीं जानते कि अमुक ग्रह के नवांश द्वादशांशादिक षड़वर्ग में ग्रहों का पृथक-पथक फलाफल क्‍या होता हैं; और फलित में नवांशादि का क्या महत्त्व हैं ? इत्यादि समस्त गृढ़ विचार इस पुस्तक से ज्ञात होंगे । वास्तव में यह ग्रहगतिजन्य अनुभव का शास्त्र  है। षड़्वर्ग- कुण्डलियाँ फलित की मेरुदण्ड हैं । आधुनिक पाश्चात्य  विद्वान्‌ पडवर्गचक्र न लगाकर

वह ग्रहों की दृष्टियों से ही जो काम लेते हैं वही काम भारतीय देवज्ञ षड़्वर्ग कुण्डलियों से लेते हैं । जो ज्योतिषी जन्मकुण्डली के ग्रहभावों के फलादेश के साथ-साथ षड््‌वर्ग- कुण्डलियों के फल एवं विशेष फलों का भी विचारपूर्वक अनुसरण करते हैं, उनको भविष्यवाणी कभी भी मिथ्या जानेवाली नहीं होती । अपितु जन्मपत्र में लिखित-  फलादेश गोली की चोट की तरह मिलेगा ही; जिसे देखकर जन्मपत्र बनानेवाले को  ज्योतिषी पर अटूट श्रद्धा बढ़ेगी ।

इस पस्तक में षड़वर्ग के साधारण फलादेश के साथ विशेष चमत्कारी फल भी  भाषा में लिखा गया है, जन्मपत्र-निर्माताओं की सुविधा के लिए षड्वर्ग की सुन्दर  सारणियाँ यथास्थान लिख दी हैं । इसके मनन एवं परिशीलन से अद्भुत .. फलादेश किया जा सकता है। ध्यान रहे; कि--जातक के शुद्ध-जन्मेष्ट एवं सूक्ष्म... द्रिकपक्षीय ग्रहस्पष्टों  से जन्मलग्न व होरादि  षड़वर्ग-कुण्डलियाँ बनती हैं, यदि स्थानीय 'जन्मेष्टकाल शुद्ध न हो या ग्रहस्पष्ट सूक्ष्म न हों तो लग्न  व षड़्वग कुण्डलियाँ भी नितान्त-अशद्ध होंगी । अशद्ध - षड्वर्ग एवं जन्मलग्न के आधार पर अव्यभिचरित-फलादेश की आशा कैसे की जा सकती है ? 

 अतः स्थानीय-जन्मेष्ट एवं सुक्षम-ग्रह स्प्ष्टों का शुद्ध होना नितांत आवश्यक है

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