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सनातन संस्कार विधि
भारतीय शास्त्रकारों के अनुसार मानव- जीवन का एक निश्चित ध्येय और उसकी प्राप्ति के अनेक साधन है l 'संस्कार' भी इन्ही में से एक साधन है l प्रत्येक मनुष्य जन्म के साथ कुछ लेकर उतपन्न होता है ; नवजात शिशु का मस्तिष्क ऐसी कोरी पट्टी नहीं है,जिस पर सर्वथा नूतन लेख लिखा जाना हो ; इस पर पूर्व जन्मो के विविध संस्कार लिखे रहते है l फिर, इस पर नये नये संस्कार भी पड़ते रहते है : जो पुराने संस्कारो को प्रभावित कर उनमे परिवर्तन, परिवर्धन अथवा उनका उन्मूलन भी करते रहते है l प्रतिकूल संस्कारो का विनाश एवं अनुकूल संस्कारो का निर्माण ही मानव - साधक का उचित प्रयास है l
'संस्कार' के महत्व को समझने के लिए उनका अभिप्राय भी समझ लेना आवश्यक है l संस्कृत साहित्य में, शिक्षण, चमक सजावट, आभूषण, छाप, अकार, सांचा, क्रिया, प्रभाव -स्मृति, पावक कर्म, विचार, धारणा, पुण्य आदि अनेक अर्थो में संस्कार शब्द का प्रयोग हुआ है l
शरीर का संस्कार इस लोक और परलोक दोनों में पवित्रता लाने वाला होता है l
प्रस्तुत प्रकाशन को शास्त्रनुसारी एवं विद्वानों की सुबिधा दृष्टि से सर्वथा उपयोगी बनाने का पूरा ध्यान रखा गया है l
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