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सामवेद
उपासना का वर्णन है इस वेद में l 'साम' में 'सा' विधा को कहा गया है और 'अम' नाम है कर्म का 'सा' संकेत करता है सर्वशक्तिमान परमात्मा की ओर, जबकि 'अम ' का सकेतार्थ 'जीव' है l साम मंत्रो में गेय पक्ष की प्रधानता है, इसलिए इसके गान से श्रद्धा समर्पण की धारा उपासक के ह्रदय में सहज रूप से प्रवाहित हो जाती है - संगीत की स्वर लहरियो से कैसे रोम- रोम तरंगगित हो उठता है , इनका अनुभव प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अवश्य होता है l इस वेद की ऋचाए गान की दृष्टि से नपी - तुली है, इसीलिए शब्द, भाव और स्वर के समन्वय की दृष्टि से इसे मंत्रो के 'प्राणतत्व' के रूप में स्वीकार किया जाता है l
मित्रं वयं हवामहे वरुणं सोमपीयते या जाता पूतदक्षसा l l
अर्थार्त हम वाजिक लोग सोमपान के लिए 'प्राण' और 'अपान' को पुकारते है, जो सोम के सेवन से पवित्र बल से युक्त हुए है l