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"वस्तु - वास्तु - तथास्तु " इन त्रिविध आयामों का जिसमे ज्ञान होता है, उसको वास्तुशास्त्र कहते है I वस्तु जो है वह अचर है, वास्तु जो है वह ऊर्जास्वरूप है और "तथास्तु" का आशीर्वाद देनेवाली "देवता " स्वंय एवं चित शक्ति का परम - आविष्कार है I
वास्तुशास्त्र की जितनी भी धारणाए है, संकल्पना है उनका मूल योगशास्त्रों में पाया जाता है Iफेंगशुई शास्त्र में वैश्विक प्राण कॉस्मिक ब्रेथ के बारे में बहुत चर्चा की गई है Iइस प्राणशक्ति को फेंगशुई में 'ची' कहते है, मुलत: इस " ची" शब्द का आयोजन " चिति " शब्द का ही अवनत रूप है I पूर्व दिशा का दूसरा नाम "प्राची" है I इस प्रकार इस शब्द की व्याख्या की जाती है I ईशान्य कोण में जो " शिखी नाम से देवता है उसकाही दुसरा नाम चिति है I