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रसरत्नाकर 'रसेन्द्र खण्ड - मंत्र खण्ड '
रसरत्नाकर ' ग्रन्थ श्री नित्यनाथ सिद्ध विरचित एक महान ग्रन्थ है जो समुद्र की भांति विशाल और गंभीर है l बारहवीं शताब्दी का यह ग्रन्थ वडीखंड, रसखण्ड, रसायनखंड, रसेन्द्रखण्ड एवं मन्त्रखण्ड में रसशास्त्र के सम्पूर्ण विषय को अपने में समेटे हुए है l
रसाणर्व नामक ग्रन्थ के रसखण्ड में शम्भू ने जो पूर्व में कहा था, रस की प्रंशसा करते हुए दीपिका और रसमंगल में जो बताया गया है, रोगियों के कल्याण के लिए नागार्जुन ने जो कहा है, सिद्ध चर्पट ने स्वर्ग वैधक और कपालिक में जो बताया है, वाग्भट के अष्टांगहृदय ग्रन्थ में जो बताया है,वैधो के लिए सागर के समान सुश्रित संहिता में जो सुश्रित ने कहा है तथा अनेक सिद्धो ने जो कहा है, उन सबको देखकर उसमे जो असाध्य प्रतीत हुआ उसे और जो औषधियाँ दुर्लभ है, उन्हे छोड़कर जो सारभूत है, उसे ही इस ग्रन्थ में प्रस्तुत किया गया है l
ऐसे विशिष्ट ग्रन्थ का प्रचार - प्रसार मानवहित में हो, इस विचार से प्रेरित होकर उक्त ग्रन्थ का सम्पादन हिन्दी व्याख्या सहित करने का संकल्प मैंने अपने आर्युवेद में पीएच.डी. उपाधि के निमित शोधकार्य में ही कर लिया था l इस खण्ड के मुख्यत: दो विभाग है - प्रथम विभाग में रसशास्त्र के बाद अर्थात सिद्धांत पक्ष का विवरण और द्वितीय भाग में ' रसखण्ड एवं रसायनखण्ड ' अपर नाम 'कायाकल्प खण्ड' का सम्पादन शशि प्रभा हिंन्दी व्याख्या के साथ रस-रसायन खण्ड अपर नाम 'कायाकल्प खण्ड ' के नाम से सन २०१५ में प्रकशित हुआ है l
प्रस्तुत ग्रन्थ इतना विशाल एवं गुह्य तथा द्वियर्थी शब्दों से युक्त है, जिसका ज्ञान मेरे जैसे समान्य बुद्धि वालो के लिए दुष्कर है l सही अर्थ तो कोई तत्वज्ञ ही जान सकता है l
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