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जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म जहाँ भारतीय धर्म एवं संस्कृति की मूल भित्ति हैं वहीं अपने आप में अत्यन्त गूढ़ गोपनीय और रहस्यमय हैं। प्रारम्भ से ही इनके तिमिराच्छनन विषयों के प्रति पूर्व और पश्चिम के विद्वानों तत्ववेत्ताओं और परामनोवैज्ञानिको की जिज्ञासा रही है | जिसके फलस्वरूप जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म से संबंधित बहुत सारे रहस्यमय तथ्य उद्घाटित हुए हैं। अब तक, इसमें सन्देह नहीं और भविष्य में भी उन पर और प्रकाश पड़ेगा इसमें भी सन्देह नहीं।
भारतीय धर्म और दर्शन के अनुसार मृत्यु के बाद भी आत्मा नष्ट नहीं होती। स्थूल शरीर की ही तरह उसका सूक्ष्म शरीर में अस्तित्व बना रहता है। आत्मा एक सतत् विकासशील तत्व है| उसके विकास की अन्तिम सीमा है मोक्ष | मोक्ष को उपलब्ध होने पर आत्मा का अस्तित्व सदैव के लिए समाप्त हो जाता है। इसी अवस्था को आत्म मुक्ति कहते है। जैसे अपने आपमे मृत्यु सत्य है वैसे ही पुनर्जन्म भी अपने आपमे सत्य है। यदि मृत्यु है तो पुनर्जन्म भी अवश्य है। भारतीय
धर्म में पुनर्जन्म पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। केवल भारत में ही नहीं बल्कि चीन, लंका, मिस्र, आयरलैण्ड, फ्रान्स, इंलैण्ड, अरब, तुर्की , अमेरिका, भूटान आदि देशों में भी पुनर्जन्म के सिद्धान्त को मान्यता मिली हुई है। चीन में पुनर्जन्म के सिद्धान्त के अनुसार आत्मा के तीन भाग है। पहला है क्यूई' दूसरा है 'लिंगः और तीसरा है ह्यून' | क्यूई शरीर क॑ साथ समाप्त हो जाता है। 'लिंग' शरीर की मृत्यु के बाद कुछ समय तक जीवित रहता है और फिर मर जाता है। आत्मा का तीसरा अवयव ह्यून जोकि मस्तिष्क में रहता है-मृत्यु के बाद भी नष्ट नहीं होता है और अगले जन्मों की यात्रा करता है।
बाइबिल जैसे प्राचीन ग्रन्थों ने भी पुर्नजन्म को स्वीकार किया है और आत्मा के अस्तित्व को भी। महान दार्शनिक प्लेटो ने भी आत्मा के अमरत्व और मृत्योपरान्त जीवन के अस्तित्व को भी स्वीकार किया है।