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विंशोत्तरी दशा के नाम से प्रख्यात पद्धति का भारतीय ज्योतिष में ऊँचा स्थान है। पराशर की इस पद्धति का उपयोग भारतीय ज्योतिषवेत्ता फल-प्रतिपादन के लिए प्राचीन काल से करते आ रहे हैं। विशोत्तरी पद्धति
तकसंगत तथा अनुभवसिद्ध है। उसके निर्देशों के आधार पर फलादेश प्राप्त करने की विधि भी कठिन नहीं है।
लघुपाराशरी का रचनाकाल जेसे अतीत के अज्ञात गर्भ में छिपा पडा है, वैसे ही उसके आधारभूत सिद्धान्त .भी अंधकार में हैं। शताब्दियों से इस पद्धति का उपयोग होता आया है और उसे समय की कसौटी पर खरा पाया गया है। किन्तु समय बीतने के साथ उस पर नया प्रकाश पडने के स्थान पर अनेक अनावश्यक और अनुचित बातें उसमें आकर जुड़ गईं। क॒तज्ञ ज्योतिषविदों द्वारा उसका स्वरूप निखारे जाने के स्थान पर विशोत्तरी पद्धति भ्रान्तियों के भार से बोझिल हो उठी।
विशोत्तरी दशा के वैज्ञानिक मूल क्या हैं?
ग्रहों की क्रम-गणना के आधार क्या हैं?
ग्रहों की दशा, वर्ष की आधार- भूमि क्या हैं?
राहु-केतु ग्रह नहीं हैं फिर भी उन्हें इस पद्धति में शामिल क्यों किया गया है? |
ये नये प्रश्न हैं जिन पर प्रकाश डाला गया है।