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ज्योतिष : उजाले की ओर
अनेक बार ऐसे प्रश्नों, शंकाओ और उलझनों से हमारा वास्ता पड़ता है जिनका समुचित समाधान किसी ग्रन्थ में उपलब्ध नहीं है l ऐसी उलझने शास्त्रज्ञान होने पर भी शास्त्र के मूलस्तर को बारीकी से न पकड़ पाने के कारण ही उत्पन्न होती है l वराहमिहिर ने ज्योतिषी की मौलिक योग्यताए बताते हुए कहा है कि दैवज्ञ को 'न पर्षद भीरु ' और ' पृष्ठभीध्यायी' होना चाहिए l अर्थार्त वह सभा ने बैठे हुए जिज्ञासुओ द्वारा प्रश्न पूछने पर आँखे न चुराने वाला और पूछे गए प्रश्नों का समुचित उत्तर देकर उनकी शंकाओ का समाधान करने वाला हो ग्रन्थ में २०० से अधिक ऐसे ही प्रश्नों का समाधान है, जिसमे सामान्य विधार्थी भी सभा सेमीनार में अपनी धाक जमा सकता है कुछ प्रश्नों का संकेत मात्र प्रस्तुत है