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चलु हंसा वा देश संत मत -4
एक बाहर का जगत है, जहां हम जीते है, रहते है और लोगो से संबंध बनाते है i इसके भीतर एक अंतर्जगत है, जहां हमारा मन रहता है, जहां हमारे विचार चलते है और जहां हमारे सपने चलते है I उसके भी भीतर निराकार है, अंतराकाश है I
'चलु हंसा वा देश ' में उस देश में चलने की बात कर रहे है I उस देश में, उस निराकार में, उस अंतराकाश में जहां हमारा प्रियतम गोविन्द रहता है I वहां हरि का वास है I वहां ओंकार का निवास है I उस देश में चलने की बात कर रहे हैजहां कोई विचार नहीं होता, जहां कोई समय नहीं होता, जहां कोई कल्पना नहीं होती और जहां कोई धारणा नहीं होती I
तीर्थो में नहीं, धामो में नहीं, काशी में नहीं और काबा में नहीं, परमात्मा को, अपने मंजिल को, अपने स्रोत को, अपने उद्गम को अपने ही घट के भीतर पा सकते है I
संत मत का चुतर्थ भाग 'चलु हंसा वा देस' सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ जी द्वारा आस्था टेलिविजन चैनल पर दिये गए प्रवचनों का संकलन है I सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ जी अनुभूति, अभिव्यक्ति और अंतर्दृष्टि की त्रिवेणी है I परमगुरु ओशो द्वारा सन १९७० में संतो की वाणियो पर बोलने के सिलसिले को आगे ले जाते हुए सद्गुरु ओशो सिद्धार्थ जी जनवरी २००५ से आस्था टेलिविजन चैनल पर शाम ६:५० से ७:१० बजे नियमित रूप से ईंटो की वाणी पर प्रवचन दे रहे है I
साधको के लिये इन प्रवचनों को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है I सद्गुरु ने स्वयं इनका संपादन एवं संशोधन किया है I