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ब्रह्मसूत्र -वेदान्त दर्शन
भगवान् श्री वेदव्यास ने इस ग्रन्थ में परब्रह्म के स्वरूप का सांगोपांग निरूपण किया है, इसलिए इसका नाम ब्रह्मसूत्र है तथा वेद के सर्वोपरि सिद्धान्तों का निदर्शन कराने के कारण इसका नाम वेदान्त दर्शन भी है। चार अध्यायों और सोलह पादों में विभक्त इस पुस्तक में “ब्रह्म” की पूर्ण व्याख्या दी गई है; जिससे जिज्ञासुओं की समस्त भ्रान्तियों का निराकरण हो जाता है तथा उनकी ब्रह्म में प्रतिष्ठा हो जाने पर वह परम मुक्ति का अनुभव कर सभी शोक सन्तापों से मुक्त होकर परमानन्द को उपलब्ध हो जाता है, जो इस जीव की परम एवं अन्तिम स्थिति है, जिसे प्राप्त कर लेना ही जीव का अन्तिम उद्देश्य है।
जिस प्रकार किसी वस्तु के निर्माण में छः कारणों की आवश्यकता होती है-निमित्त कारण, उपादान कारण, काल, पुरुषार्थ, कर्म और प्रकृति। इसी प्रकार सृष्टि निर्माण में भी छः ही कारण अनिवार्य हैं। इन छः कारणों की व्याख्या ही भिन्न-भिन्न छ: दर्शनों में की जगई है। इनमें से निमित्त कारण “ब्रह्म! की व्याख्या ब्रह्मसूत्र अथवा 'वेदान्त दर्शन' आपके हाथ में है।