पं. अरुण कुमार शर्मा के कथा-कहानी लिखने का एकमात्र उद्देश्य रहा है, घटनाओं का आश्रय लेकर योग तंत्र, ज्योतिष, धर्म संस्कृति आदि आध्यात्मिक विषयों को जनसाधारण के सम्मुख प्रस्तुत करना ताकि वे उनसे परिचित हो सके। इस प्रकार शर्माजी ने कथा साहित्य के क्षेत्र में कथा शैली की एक नवीनधारा का सृजन किया है।
पिछले पांच दशक के अन्तर्गत श्री शर्माजी ने कितनी कथा कहानियाँ लिखी, उन्हें उंगली पर नहीं गिना जा सकता। यहाँ यह कहना असंगत न होगा कि श्री शर्माजी का जीवन रहस्यमय रहा है। यहां तक कि वे स्वयं अपने आपमें एक रहस्य है। उनका सहज मिलनसार व्यक्तित्व निश्छल और अपनत्व भरा व्यवहार साथ ही साधारण जीवन देखकर ऐसा कभी नहीं प्रतीत होता कि एक दुबले, पतले लम्बे गौरवर्णीय वृद्ध शरीर में स्थित आत्मा ने सत्य की खोज में कितनी कष्टदायिनी दुर्गम यात्रायें की है। कितना कष्ट झेला है और उठाया है कितना दुःख जो समझने वाला होता है, वही उनके अन्तर्मुखी रहस्यमय व्यक्तित्व को समझ सकता है साधारणजन नहीं ।
योग-तंत्र, ज्योतिष, शास्त्र, उपनिषद, वेद-पुराण और दर्शन की अदभुत व्याख्या करते हैं शर्माजी। गूढ़ और रहस्यमय विषयों को सरल सुबोध और हृदयंगम बनाकर उसे अपनी प्राञ्जल भाषा में प्रस्तुत करना शर्माजी की अपनी मौलिक विशेषता है। उनकी पुस्तक उठाइये, पढ़िये, फिर उसे अपने से अलग करने की इच्छा ही न होगी पहले पचास सालों से अनवरत लिखने वाला व्यक्ति आज भी कहता है कि अभी तो कुछ लिखा ही नहीं। यदि देखा जाय तो एक प्रकार से उनका यह कहना सत्य भी है। दीर्घकाल का स्व अर्पित स्वानुभवपूर्ण उनका ज्ञान और उसकी आन्तरिक अध्यात्मपरक अनुभूतियाँ वस्तुतः पूर्णरूप से पुस्तक अथवा अन्य किसी रुप में अभिव्यक्त नहीं हो पायी है अभी तक। इसकी पीड़ा है श्री शर्माजी को और उस आन्तरिक पीड़ा को दबाये आज इस अवस्था में भी लिखते ही रहते हैं कुछ न कुछ। जैसे ‘लिखना आज इस शतउनकी नियति है और है कर्तव्य।