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Sufi Siraya ki Shayari [Hindi]

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डा. बेरिस्टर जगदीश चन्द्र बत्रा का जन्म अविभाजित भारतवर्ष में 4938 में गज़नफ्रगढ़ (मुज़ाफरगढ़) मुलतान (मूलस्थान) में हुआ 9 वर्ष की अल्प आयु में अपना सिरायकी वसेब छोड़कर विभाजन के समय 4948 में भारत के हरियाणा प्रांत में कुंजपुरा (करनाल) में  शरणार्थी के रूप में आना पड़ा | जहां उन्होंने इन्टर तक पढ़ाई की | 1959 में वह पंजाब यूनिवर्सिटी से स्नातक बने | १९६१ में दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिस्ट्री) की डिग्री ली | 1964 में वह इंग्लैंड में जा बसे | वहां उन्होंने 1969 में बैरिस्ट्री (लिंकनज़ इन) का इम्तहान पास किया । वहां से वापस हिन्दुस्तान आकर दिल्ली में वकालत शुरू की | आप ने नागपुर यूनिवर्सिटी से एल.एल.एम. तथा जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से पी.एच.डी. की | दिल्‍ली यूनिवर्सिटी में कानून के प्राध्यापक रहे | वह लेखक तथा सम्पादक भी हैं। ट्रायल एण्ड अग्जीक्यूशन ऑफ भुट्‌टो इन्टरनेशनल एयर लॉ के अतिरिक्त सिरायकी (मुलतानी) की सेवा हेतु 'सिरायकी इन्टरनेशनल' एवम्‌ 'सिरायकी दुनिया" पत्रिका के सम्पादक बने | देश विदेश की यात्राएं की और पाकिस्तान एवम्‌ विदेशों में बसे सिरायकी भाषी लोगों में अपनी मातृभाषा सिरायकी का प्रचार प्रसार किया उत्तरी अमेरिका में 'इन्टरनेशनल सिरायकी कांग्रेस” की स्थापना की [उनका जीवन समाज सेवा एवम विश्व शांति के लिए समर्पित है और गुरूजनों सूफी संत ख़्वाजा गुलाम फरीद की वाणी द्वारा अपने मिशन में अग्रसर हैं | उनके जीवन को सबसे अधिक उनकी माता श्रीमती गणेशी बाई एवं पिता श्री दलीप चन्द बत्रा जी के संस्कारों ने प्रोत्साहित किया ।

डा. बेरिस्टर जगदीश चन्द्र बत्रा

सिरायकी

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