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Hai Koi Jaane Bhed Hamara - Sant Mat 7 [Hindi] by
Publisher: Limass Foundation
है कोई जाने, भेद हमारा संत मत -7
कोई बता सकता है कि मैं कौन हू? मेरा रहस्य क्या है ? मेरा भेद क्या है ? जब संत अद्वैत ज्ञान को प्राप्त कर लेता है, तो गोविन्द के साथ एक हो जाता है और गोविन्द के साथ तादात्म्य होते ही अपने आप को असीम, अगाध, अगम महसूस करने लगता है I इसलिए चरनदास जब कह रहे है - 'है कोई जाने, भेद हमारा' तो स्वयं ब्रह्म होकर बात कर रहे है I गोविन्द होकर ये बात कह रहे है I स्वयं गोविन्द से तादात्म्य हुए बात कर रहे है I स्वयं परमात्मा उनके मुख्य से बोल रहा है कि कोई जान सकता है मेरा भेद ? कोई जान सकता है ब्रह्म का भेद?
ब्रह्म ही हो जाओ, तो ब्रह्म का भेद जान सकते हो I ब्रह्म के ओकर स्वरूप से अगर तुम परिचित हो जाओ, ब्रह्म के ओकर स्वरूप से नाता जोड़ लो, तो निश्चय ही ब्रह्म का भेद जान सकते हो I ब्रह्म का भेद जानना हो, तो ब्रह्म होना पड़ेगा I जैसे संतो ने ' अंहम ब्रह्मास्मि' की घोषणा की है I उस ऊँचाई की बात हो रही है I जैसे एक बूंद अनुभव करे कि सारा सागर मेरा ही विस्तार है I उस स्थिति में जाने के बाद ये घोषणा हो रही है I जब संत बात करता है, तो दर्शन की बात नहीं करता, सिद्धांत की बात नहीं करता, वह तो अनुभव की बात कर रहा है I साधना के एक क्षण में तुम अनुभव कर पाते हो कि सारी सृष्टि मेरा ही विस्तार है I चैतन्य भी हम ही है और जड़ भी हम ही है I संसार भी हम ही है ब्रह्म भी हम ही है I कुछ लोग मानते है संसार अलग है ब्रह्म से, लेकिन संसार और ब्रह्म अलग - अलग नही है I लेकिन ' अंहम ब्रह्मास्मि' की जो बात है, ये बड़ी भेद भरी बात है, इसको कोई बिरला संत ही जान पाता है I
साधको के लिये इन प्रवचनों को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है I सद्गुरु ने स्वयं इनका संपादन एवं संशोधन किया है I
Hai Koi Jaane Bhed Hamara - Sant Mat-7
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