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मंत्र-साहित्य का इतिहास अत्यंत प्राचीन है तथा इसका उद्भव प्रागेतिहासिक-काल में ही हो चुका था। वस्तुतः मन्त्रों का सृजन तभी से आरम्भ हुआ, जब से मनुष्य को वाणी का वरदान प्राप्त हुआ। इस सन्दर्भ में यह भी कहा जा सकता है कि आदि मानव ने अपने मनोभाव प्रकट करते समय जिस ध्वनि का उच्चारण किया, सम्भवतः वही आदि मन्त्र था। जब कोई नवजात शिशु इस धरा पर आता है, तो आते ही वह-' आं...आं.... ' का उच्चारण करता है। हालांकि वह उस समय इस
सांसारिक-मोह से नितान्त अनभिज्ञ होता है, किन्तु उसके मुख से उच्चरित ध्वनि तत्काल ही प्रसूता तथा आस-पास में उपस्थित अन्य सभी को उस शिशु के प्रति संवेदित कर देती है। यह ध्वनि-प्रभाव का स्पष्ट उदाहरण है। और इसी
सूत्र को आधार बनाकर ध्वनि-विशेषज्ञों ने मंत्रों की रचना की। गहनता से विचार करने पर प्रतीत होता है कि प्रकारान्तर से ' ॐ ' ध्वनि का सार है। ' ॐ ' को विश्व-ब्रहमाण्ड का सूक्ष्म प्रतिरूप कहा जाता है।
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