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ऋग्वेद (भाग- 3)
'ऋक' पद ऋच धातु से बना है l इसका अर्थ है - स्तुति करना l ऋग्वेद में स्तुति की प्रधानता है l अग्नि, इन्द्र, सूर्य, वायु, वरुण आदि देवताओं और ज्ञान की स्तुति ही इस सर्वाधिक प्राचीन वेद का लक्ष्य है l ऋग्वेद में 'सोमरस' के गुणों का व्यापक रूप से वर्णन किया गया है l यह सोम देवताओं को पुष्ट करता है, ताकि वे आसुरी शक्तियों को विनष्ट करने में सक्षम हों l ऋग्वेद में सम्पूर्ण जड़- चेतन सृष्टि के सुख और कल्याण की कामना की गई है l ऋषियों का दृढ विश्वास है कि ईश्वर सभी की सदैव रक्षा करता है -
इन्द्रेही मत्स्यनधसौ विश्वेभिः सोमपर्वभिः l
महा अभिष्टिरोजसा ll
अर्थार्त ईश्वर (इन्द्र) संसार के अणु - परमाणु में व्याप्त सभी की उसी प्रकार रक्षा करता है, जिस प्रकार सूर्य सभी लोकों में सबसे बड़ा होने पर भी सभी प्रदार्थो को प्रकाश देता है l
धर्म और अध्यात्म से जुड़े प्रत्येक प्रश्न का समाधान है ऋग्वेद में !
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