atharvved-vol-2
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Atharvved (Volume 2) [Hindi]

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अर्थववेद (भाग-२)

अर्थववेद को वैदिक साहित्य में 'ब्रह्मवेद ', भैषज्यवेद ' और 'अथर्वगिरस ' नाम से भी पुकारा जाता है l अधर्वा और अंगिरस नामक ऋषि इस वेद की ऋचाऔ के द्रष्टा है l अथर्वा ऋषि ने जिन ऋचाओं का साक्षात्कार किया, वे अध्यात्मपरक, सुखकारक, आत्मिक उत्थान करने वाली तथा जीवन को मंगल से परिपूर्ण करने वाली है l ये ऋचाए सृजनात्मक है l अंगिरस ऋषि द्वारा द्रष्ट ऋचाए संहारात्मक है l  इनमे शत्रु - नाश, जादू - टोना, मारण, वशीकरण आदि प्रयोगों की चर्चा है l

इस प्रकार अर्थववेद में जहां एक ओर मन्त्र- तंत्र द्वारा साधना - उपासना करते हुए अध्यात्म को साधा गया है, वहीं दुःख- दारिद्र्य, शाप -ताप तथा प्रेत बाधाओं से निवृति के उपायों को भी सुझाया गया है l

इस वेद की उपयोगिता ने ही प्रारंभिक विरोधों के बाद वेदों में चौथा स्थान प्राप्त किया l वेदत्रयी को मानने वाले लोग अब इसे चौथे वेद के रूप में प्रतिष्ठा और सम्मान देते है l

उंघते नम: उदायते नम: उदिताय नम: l

विराजे नम: स्वराजे नम: सम्राजे नम: ll

अर्थार्त उदय होते हुए परमात्मा को नमस्कार है, ऊंचे उठते हुए परमात्मा को नमस्कार है, उदय हों चुके परमात्मा को नमस्कार है, विविध राजाओ को नमस्कार है , अपने आपको नमस्कार है, राजराजेश्वर सम्राट को नमस्कार है l

 

 

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