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Meer Ki Shayri
मीर की शायरी
दर्द की असीम गहराइयों को अपने रोम - रोम में
समेटे अनमोल कलाम का खूबसूरत गुलदस्ता
वक्त की मार तराशती है आदमी को और इस तराशे हुए हीरे को ही कहा जाता है - शायर l तभी तो उसमें धार होती है और होती है चमक l मीर तकी 'मीर' ने जिंदगी को बड़ी गहराई तक महसूस किया था l जिंदगी के बहरूपियेपन की झलक मीर के एक - एक शे'र में मिलती है l पारखी और उस्ताद शायरों ने मीर को 'खुदा -ए - सुखन' की पदवी से ऐसे ही नहीं नवाजा था l 'मीर' बस मीर थे - मीर यानी सरदार l
उनके बारे में जौक कहते है -
न हुआ, पर न हुआ 'मीर' का अंदाज नसीब
'जौक' यारों ने बहुत जोर गजल में मारा
जबकि मिर्जा ग़ालिब फरमाते है -
अपना भी यह अक़ीदा है, बकौले 'नासिख़'
आप बे -बेहरा है, जो मौतकीदे ' मीर' नहीं
जनाब हसरत अर्ज करते है -
शे'र मेरे भी है पुरदर्द वलेक़िन 'हसरत'
'मीर' का शेवा - ए - गुफ़्तार कहा से लाऊ
0.5kg | ₹40 |
1kg | ₹70 |
1.5kg | ₹110 |
2kg | ₹130 |
2.5kg | ₹138 |
3kg | ₹170 |
4kg | ₹175 |
5kg | ₹200 |
7kg | ₹270 |
10kg | ₹325 |
12kg | ₹420 |
15kg | ₹530 |
20kg | ₹850 |