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इक़बाल की शायरी
कैदे मौसम से तबीयत रही आबाद उसकी
काश गुलशन में समझता कोई फरियाद उसकी
अल्लाह इकबाल एक ऐसी शख्सियत थे, जिनका इकबाल आसमाने - शायरी पर सबसे अधिक चमका l इनकी शायरी में जहां नदियों, पर्वतों और लहलहाते गुंचों की बेबाक बयानगी है , वही सबसे पहले शायरी की राजनीतिक और समाजी तौर पर जोड़ने की पहल और क्रांति की खुशबु भी है l मुसलमान आज भी इनका कलाम कुरान की तरह तलावत करते है l शायरी की बदौलत जर्मन सरकार ने इक़बाल को 'डॉक्टरेट' और अंग्रेज सरकार ने ' सर ' की उपाधि से नवाजा था l रवीन्द्रनाथ ठाकुर के बाद इकबाल ही है, जिन्होंने शायरी के जरिये असीम बुलंदियों को छुआ l गौर फ़रमाए, इनकी कलम का कमाल, कुछ खास शी'रो पर -
खुदी को कर बुलन्द इतना कि हर तक़दीर से पहले
खुदा बन्दे से खुद पूछे, बता तेरी रजा क्या है
खोल आंख, जमीं देख, फलक देख, फजा देख
मशरिक से उभरते हुए सूरज को जरा देख
न तू जर्मी के लिए है न आसमां के लिए
जहां है तेरे लिए तू नहीं जहां के लिए
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