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भावार्थ रत्नाकर
यह ग्रन्थ ज्योतिष पर एक अत्युत्तम अनुसंधानात्मक ग्रन्थ है l श्री रामानुज कृत 'भावार्थ रत्नाकर ' ज्योतिष साहित्य में अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है i यह ग्रन्थ कई अर्थो में असाधारण कहा जा सकता है l ज्योतिष के कई मौलिक सिद्धान्तों का वर्णन और उदाहरण इस पुस्तक में हमको मिलते है l इन सिद्धान्तों सम्बन्धी श्लोको का अध्ययन हम समझते है कि न केवल ज्योतिष शास्त्र के विद्याथिर्यों के लिए आवश्यक है बल्कि ज्योतिष के आचार्यो के लिए भी अनिवार्य है l
जिन महत्वपूर्ण नियमो को इस पुस्तक में दिखलाया गया है उसकी एक सूचि आपको "नियमाध्याय" में अध्ययन के लिए मिलेगी l यधपि ये बाते ज्योतिष साहित्य में ढूढ़ने पर आपको मिल जायेगी परन्तु उनको एक स्थान पर इकट्ठा कर ग्रंथकार ने ज्योतिष की महत्ता को बढ़ाया है l
उदाहरण के लिए आप इस नियम को ले कि जो ग्रह दो राशियों के स्वामी है वह उस भाव का फल करते है जिसमे कि उनकी मूल त्रिकोण राशि स्थित होती है l यह नियम इतने महत्व का है कि हम इसकी जितनी श्लाधा करे, कम है l प्रत्येक जन्म -कुण्डली में लग्नेश शुभ माना गया है परन्तु वृषभ लग्न वालो को प्राय: शुक्र की दशा में कष्ट मिलना, आर्थिक कष्ट और शारीरिक कष्ट l
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