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Nadi Pariksha Vigyan [Hindi]

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आर्युर्वेदीय

नाडीपरीक्षा- विज्ञान

आर्युर्वेदीय चिकित्सा का उद्देश्य है - व्याधिविशेष का सम्प्राप्ति - विघटन तथा प्रकृति - स्थापन l यहाँ मात्र रोगनामपूर्वक नहीं अपितु प्रकृति -विकृतिपरक सम्प्राप्ति -ज्ञानपूर्वक रोग- निदान करने का विधान है l वैध रोगी- रोग परीक्षा द्वारा प्रत्येक रोगी में उसके रोग की सम्प्राप्ति सुनिश्चित करता है और विकृति के घटको के ज्ञान के बाद संशोधन, संशमनादि क्रियाओ द्वारा सम्प्राप्ति -विघटन का प्रयास करता है l आचार्य चरक ने कहा भी है कि ऐसा न तो संभव है और न ही आवश्यक है कि प्रत्येक रोग या रुग्णावस्था का नामकरण किया जाय l आवश्यक यह है कि प्रत्येक रोग या रुग्णावस्था का नामकरण किया जाय l आवश्यक यह है कि रुग्णावस्था के दोष, दृश्य, अधिष्ठानादि का ज्ञान करके 'पुरुषं पुरुषं वीक्ष्य' क्रियाकर्म किया जाय l 

उपरोक्त प्रकार का रोगनिदान अत्यंत व्यापक और बहुआयामी है, अत: तदनुरूप ही आचार्यो ने रोगी - रोग परीक्षा की विस्तृत तथा व्यापक और बहुआयामी विधि का विकास किया है l आर्युवेद में किसी क्रियाविशेष या परीक्षणविशेष मात्र से तुरंत निदान कर लेने का विधान नहीं है l वस्तुत : मौलिक आर्युवेद चिकित्सा विज्ञान में केवल मात्र नाडी देखकर सटीक निदान कर लेने का आग्रह भी नहीं है l

आर्युवेद विश्व की एकमात्र ऐसी चिकित्सा - पद्धति है जहाँ रोगपरीक्षा तथा रोगीपरीक्षा की व्याख्या व् विधा अलग - अलग दी गयी है और रुग्ण व्यक्ति के केवल रोग ज्ञान हेतु ही नहीं अपितु रोगी के प्रकृत्यादी भावो और उसके अवशिष्ट स्वास्थयांश के मूल्यांकन का विधान है I नाडीपरीक्षा तथा उससे गूढ़ आतुरीय ज्ञान की प्राप्ति सतत अभ्यास तथा साधना का विषय है I

 

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