Kalitantram Rudrachanditantram - Hindi Author- SN Khandelwal
कालीतन्त्रम् दशमहाविधानतगर्त भगवती काली की आराधना का एक प्रमाणिक ग्रन्थ है i कलि में काली तथा विनायक को ही तांत्रिक दृष्टि से विशेष फलदायक माना गया है i अखण्ड काल से उन्मिषित कलनात्मिका शक्ति ही काली है i अतएव काल के अन्तर्गत काल के शासन में रहने वाले सचेतन वर्ग मात्र पर भगवती काली का अधिपत्य है i इस दृष्टि से कालितन्त्र में भगवती की यथार्थ उपासना का रूप प्रस्तुत किया गया है i
Author- Divakar Shashtri बहुतों के यहाँ जन्मकुंडली बनवाई ही नहीं जाती l बहुतों की जन्मपत्री माता-पिता की अतत्परता से नहीं बन पाती l बहुतों की असावधानी से खो जाती है...
रसरत्नाकर 'रस- रसायन खण्ड' By Swami Nath Mishr रसरत्नाकर ' ग्रन्थ श्री नित्यनाथ सिद्ध विरचित एक महान ग्रन्थ है जो समुद्र की भांति विशाल और गंभीर है l बारहवीं शताब्दी...
रसरत्नाकर 'रसेन्द्र खण्ड - मंत्र खण्ड ' By Swami Nath Mishr रसरत्नाकर ' ग्रन्थ श्री नित्यनाथ सिद्ध विरचित एक महान ग्रन्थ है जो समुद्र की भांति विशाल और गंभीर है ...
रसरत्नाकर ऋद्धि खण्ड By Swami Nath Mishr चिकित्सा - विज्ञान के क्षेत्र में ऐसे - ऐसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ है, जिनमे समस्त रोगो को दूर करने, चिरयौवन को सुरक्षित रखने अथवा...
वास्तुशास्त्रविमर्श By Chandramohan Jha वास्तुशास्त्र एक विकसित शाखा है l इस शाखा की पूर्णता के लिए ज्योतिष की आवश्यकता होती है l इन दोनों शाखाओ में कही सामान्य अंतर है...
जातकालंकार By Satyendra Mishra
फलितज्योतिष का विकास पुराणों में उध्दत व्यास - वशिष्ठ - नारदादि दैवज्ञों के वचनो के आधार पर ही हुआ है I प्रस्तुत ग्रन्थ "जातकालंकार " श्रीमदभागतोक्त जो जातक सम्बन्धी फल है उन्ही के आधार पर निर्मित है l इस विषय में ग्रंथकार की भी स्पष्टोक्ति है I यह ग्रन्थ सात अध्यायों में है जिसमे छ: अध्याय ज्योतिष सम्बन्धि और सातवाँ वंश वर्णन का है I इन सातो अध्यायों में श्लोको की संख्या क्रमश : ११-३७-३३-३-२२-८ और ४ है I इन सब का योग ११८ होता है जबकि ग्रंथकार ने छठे अध्याय में ११० श्लोक ही बताया है I संभवत: ग्रन्थ में जो ज्योतिष सम्बन्धि श्लोक नहीं है, उनको ग्रंथकार ने गणना में नहीं लिया है I ग्रन्थ के अंतर्गत आने
आर्युर्वेदीय नाडीपरीक्षा- विज्ञान By Govind Prasad Upadhyya आर्युर्वेदीय चिकित्सा का उद्देश्य है - व्याधिविशेष का सम्प्राप्ति - विघटन तथा प्रकृति - स्थापन l यहाँ मात्र रोगनामपूर्वक नहीं अपितु प्रकृति -विकृतिपरक सम्प्राप्ति -ज्ञानपूर्वक रोग- निदान करने का विधान है l वैध रोगी- रोग परीक्षा द्वारा...