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कर्मठगुरु --- मुकुन्दवल्लभ मिश्र
(' भ्रमोच्छेदनी ' टिप्पणियों से युक्त)
कर्मकाण्ड करानेवाले विद्वानों के लिए यह अमूल्य निधि है। इसको पास में रखने से सामान्य ज्ञान वाला व्यक्ति भी आसानी से कर्मकाण्ड तो करा ही सकता है, साथ ही बहुत-से ऐसे विषयों का भी उसे ज्ञान हो जाता है जो अत्यावश्यक , लोकोपकारी तथा सद्य:फलप्रद है।
पौरोहित्य-कर्मपद्धति --.- रामदास त्रिपाठी
प्रस्तुत ग्रन्थ में देवताओं के विविध प्रकार के पूजा-विधान, संस्कार, श्राद्धादि, कराने की विधियों का विस्तृत विवेचन सरल ढंग से हिन्दी एवं संस्कृत भाषा में किया गया है।
मनुस्मृति ---- जगदीशलाल शास्त्री
महर्षि मनु को स्वयम्भू व मानव-सृष्टि के आदिपुरुष के अतिरिक्त अग्नि के स्थापक, ईश्वर से प्रत्यक्ष रूप में विधि व विधानों को प्राप्त करने वाले देवतुल्य पुरुष, कृतयुग के एक नृपति तथा अर्थशास्त्र के एक रचनाकार के रूप में भी जाना जाता है। मनुस्मृति में मनु को राजा कहा गया है। मनु की कृति को अत्यन्त उत्कृष्ट स्थान प्राप्त है। ''मन्वर्थविपरीता या सा स्मृतिर्न प्रशस्यते'', ““मनुर्वे यत् किज्वाह तद् भेषजम्'', इत्यादि टिप्पणियां मनुस्मृति की प्राचीन काल से चली आ रही परम्परागत महत्ता की द्योतक हैं। मनु का यह ग्रन्थ प्राचीन भारतीय संस्कृति का प्रतीक कहा जा सकता है।
मनु ही पहले विचारक थे जिन्होंने विभिन्न संस्कृतियों, वर्गों, धर्मों में एकरूपता लाकर सामाजिक व्यवस्था का सूत्रपात किया। मनुस्मृति इसी व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करती है।
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