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“व्यापारे वसति लक्ष्मी:”
.. यह बात निर्विवाद सिद्ध है कि जेसे मनुष्य व्यापार से शीत्र धनाडय हो सकता है वैसे नौकरी, कृषि. आदि अन्य कर्मों से नहीं । एतंदर्थ शास्त्रकारों ने भी व्यापार में लक्ष्मी का निवास माना है।
_ व्यापार सफलतार्थ जैसे बद्धिचातुयँ और देश, काल, परिस्थित्यादि के. ज्ञान की आवश्यकता है वेसे ही तदुपयोगी ज्योति: शास्त्रान्तर्गत अर्घकाण्ड के ज्ञान की भी परमावश्यक्रता है, क्योंकि जिस प्रकार ग्रहस्थिति द्वारा प्राणियों का सुख, दुःख, हानि, लाभ तथा भूत, भंविष्य, वतंमान काल का फल जाना जाता है उसी प्रकार ग्रहगति द्वारा सुभिक्ष, दुर्भिक्ष समघं, महर्घादि व्यापार
भविष्य भी चिरकाल पहले हो जाना जा सकता है। आजकल जेसे स्थानीय बाजारभाव पर राजकीय आदेश तथा समाचार पत्र, तार, रेडियो, टेलीफोन आदि साधनों द्वारा अन्य -द्रदेशीय मंडियों. के भाव का प्रभाव तुरन्त पड़ता है वेसे ही ग्रहों के राशिचार, नक्षत्रचार, युति उदयास्त ग्रहवेघ, ग्रहण, क्षय, चुद्धि, अधिक मासादि एवं दकुन अर्थात्-किसी विशेष-तिथि को बिजली,
बादल, वर्षा, वायु उत्पातादि का प्रभाव व्य पपारिक वस्तुओं पर .तेजी मन्दी के रूप में पड़े बिना नहीं रह सकता ।. इस अद्भुत प्रभाव को समझ कर लाभ उठाने के लिए ही- मैंने यह पुस्तक भारी खोज से प्राचीन आचाय॑ तथा अर्वाचीन विद्वानों के मतों का आलोडन कंरके तथा अपनो वर्षों की विशेष गम्भीर गवेषणा (रिसर्च) के. साथ लिखो है। अर्थात् इस पुस्तक में प्राचोन ग्रंथों
के रांशि-नक्षत्रचारादि के फलादेशों में जहाँ-जहाँ जो-जो विशेष अनुभव हुआ है वहाँ-वहाँ वह-वह्. यथास्थान ठीक करके तेजी मन्दी के टके आदि के साथ खिला गया है, और सैंकड़ों नवीन योग अपने वर्षों के अनुभव के आधार
पर लिखे हैं, जो कि आप को अन्य किसी भी ग्रन्थ में नहीं मिल सकंगे ।
0.5kg | ₹40 |
1kg | ₹70 |
1.5kg | ₹110 |
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