जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म जहाँ भारतीय धर्म एवं संस्कृति की मूल भित्ति हैं वहीं अपने आप में अत्यन्त गूढ़ गोपनीय और रहस्यमय हैं। प्रारम्भ से ही इनके तिमिराच्छनन विषयों के...
आवाहन
भारत में प्राचीनकाल से ही देवी - देवताओ और सिद्ध, महापुरुषों की छवि के साथ- साथ चक्राकार प्रभामंडल प्रदर्शित किया जाता रहा है I इनके चित्रों को और उसमे प्रभामंडल को देखकर सामान्यत: लोग यही समझते है कि यह उनकी शोभा के लिए और काल्पनिक रूप से महत्ता बताने के लिए दिया गया है I यह भी कहा जाता है कि सन्त- महात्माओ और सिद्ध योगियों के पास जाते ही वे एक ही नजर में लोगों को पहचान लेते है तथा बाधा व्याधियों के बारे में सही - सही जानकारी देते है I सिद्ध पुरुषो के ऐसे चमत्कारी प्रभाव से विद्वान और वैज्ञानिक अछूते नहीं रहे है I साधु- संतो के द्वारा प्रदर्शित ऐसी चमत्कारी घटनाओ को कुछ लोग धार्मिक
प्रस्तुत कथा संग्रह में आप जो कुछ भी पढ़ेंगे, निश्चय ही कुछ प्रसंगों और कुछ घटनाओं पर आपको सहसा विश्वास नहीं होगा। यह स्वाभाविक भी है। मनुष्य उसी विषय वस्तु...
गुरुजी की काफी दिनों से इच्छा रही ज्योतिष पर पुस्तक लिखने की जो २००८ में कालपात्र नाम से पूर्ण हुआ | उनका कहना था कि ज्योतिष का सम्बन्ध जितना देश काल पात्र से है उतना ही योग और तंत्र साधना से भी है। गुरुजी का ज्योतिष शास्त्र पर पुस्तक लिखने का उद्देश्य था कि जन सामान्य व प्रबुध्द पाठकगण ज्योतिष शास्त्र से सम्बन्धित विषयों का ज्ञान हो तथा अपने जीवन में उसका सद्पयोग करें | गुरुजी ने योग-तंत्र के साथ-साथ ज्योतिष शास्त्र पर भी गहन शोध किया और सामान्य भाषा में प्रस्तुत करने का भरसक प्रयास भी किया। उनका कहना था कि वेदों के समान भारतीय ज्योतिष शास्त्र की प्राचीनता है और है महत्व । अथरव॑वेद के ६५ ऋचाओं में ज्योतिष सम्बंधित ज्ञान वर्णित है देखा जाए तो सम्पूर्ण ज्योतिष शाश्त्र सूर्या, चंद्र , और नक्षत्रों के सूक्ष्म अवलोकन पर ही आधारित है
भारतीय प्रज्ञा ने सर्वप्रथम नक्षत्रों तथा उनके संचरण और उनके ऊर्जा के प्रभाव को अपने शोध और खोज का आधार माना |
... भारतीय प्रज्ञा के मतानुसार ज्योतिष शास्त्र खगोलीय ज्ञान का महत्वपूर्ण अंग है। इसके बिना ग्रहों की वास्तविकता और उससे सम्बन्धित गहन सत्य को प्रगट नहीं किया जा सकता है
अभौतिक सत्ता में प्रवेश अभौतिक सत्ता में केवल भाव है, भावना है, अनुभूतियाँ है - जिनको प्रमाणित नहीं किया जा सकता I उसी प्रकार जैसे आप सपने में घटी घटनाओ...
प्रस्तुत पुस्तक आकाशचारिणी जो मेरे जीवन का अनुभवपूर्ण व सत्य घटनाओं पर आधारित कथा संग्रह है। प्रस्तुत कथा संग्रह में आप जो कुछ भी पढ़ेंगे, निश्चय ही कुछ प्रसंगों और...
पुस्तक का नाम 'मारणपात्र' क्यों ? यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है | वास्तव में तंत्र की भाषा में मनुष्य की खोपड़ी को 'महापात्र' कहते हैं | तन्त्र के षट्कर्म साधन...
द सन् १६४८ ई. से १६७८ ई. की काल सीमा के अन्तर्गत योग-तंत्र .. से संबंधित अपनी आध्यात्मिक पिपासा को शान्त करने के उददेश्य से जिन प्रच्छन्न और अप्रच्छन्न सिद्ध साधकों, महात्माओं और योगियों से मेरा सत्संग लाभ हुआ और सत्संग के क्रम में जो गुह्य ज्ञान उपलब्ध हुआ जो अलौकिक अनुभव हुए और साथ ही जो अवर्णनीय परानुभूति हुई मुझे | निश्चय ही वह अतिमहत्वपूर्ण आध्यात्मिक सम्पत्ति समझी जायेगी इसमें सन्देह नहीं | उन्ही सबका परिणाम है 'कारण पात्र' |
आरतीय आध्यात्म का मुख्य विषय है योग और तंत्र | इस विश्व भ्रमांड में में दो सत्ताएं है - आत्मपरक सत्ता और वस्तुपरक सत्ता | पहली आतंरिक है और दूसरी सत्ता बाह्य हैं। आत्मपरक सत्ता का संबंध अंतर्जगत से है और जिसका विषय है आत्मा|| इसी प्रकार वस्तुपरक सत्ता का संबंध है बहिर्जगत से यानी भौतिक जगत से और जिसका विषय है मन | आत्मा और मन | दो सत्ताओं की तरह इस विश्व ब्रह्माण्ड में एक मूल तत्त्व भी है जिसे आध्यात्मिक भाषा में परमतत्व भी कहते हैं। और उस परमतत्व के दो रूप हैं - आत्मा और मन | लेकिन दोनों का स्वभाव भिन्न- भिन्न है आत्मा स्थिर है | स्थिरता और साक्षी भाव उसका गुण जबकि मन है अस्थिर | अस्थिरता और चंचलता उसका गुण है|
परलोक का मुख्य माध्यम मृत्यु है। जब तक मृत्यु नहीं हो जाती तब तक परलोक के दर्शन नहीं हो सकते; किन्तु वेद, तन्त्र भली-भाँति यह उद्घोष करते हैं कि विना...