Exhaustive details about the impact of the signs on an individual are not found in the books. The planets work through the confined prem-ises defined by a house but the...
Pancha Pakshi Shastra Ke Rahasya - Hin पंच्चपक्षी तमिल संतो एवं महर्षियो की ऐसी अलौकिक देन है जिसे दिनानुदिन जीवन के हर क्षेत्र में अपनाकर एक सफल एवं सुखी जीवन...
Ashtakvarga - Concept & Application ( English ) The Ashtatkvargs systems of Astrology is unique. It gives at a glance the complets pictures of a person ‘s health, wealth, finances,...
Ashtakavarga - Hindi
ज्योतिष शास्त्र में अष्टक वर्ग पद्धति का गौरवपूर्ण स्थान है I पलक झपकते ही इसके द्वारा जातक के स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिति, आध्यातिमक विकास,आजीविका तथा अन्य अच्छी - बुरी सम्भावनाओ क़ी सही जानकारी प्राप्त क़ी जा सकती है I अन्य किसी विधा में अष्टक वर्ग सरीखा अचूकता से गोचर ग्रह के प्रभाव का आकलन सम्भव ही नही I अष्टक वर्ग सारिणी पर दृष्टिपात करने से जातक की आजीविका क्षेत्र में सफलता व् सम्पन्नता तथा विभिन्न ग्रहो की दशा का फल सटीक व् प्रभावशाली ढंग से बताया जा सकता है I अष्टक वर्ग के आभाव में यह जान पाना असम्भव है की श्री गुलजारी लाल नन्दातथा श्री चरणसिंह इतनी अलप अवधि के लिए प्रधानमंत्री क्यों बने तथा पंडित जवाहरलाल नेहरू एवं इंदिरा गाँधी का प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल इतना लंबा क्यों चला I
भयप्रद साढ़े साती के परिणाम भी अष्टक वर्ग की सहायता से सहज व् सही ढंग से जाने जाते है I इसकी सहायता से पता लगता है की शनि के अष्टक वर्ग में अधिक विंदु पाने वाली राशि पर शनि का संचार दुःख व् हताशा नहीं देता अपितु धैर्य, उत्साह व् कार्य क्षमता बढ़ाता है I
इस विधा का प्रयोग मुहर्त विचार में भी किया जा सकता है I किस दिशा में सफलता व् सम्पन्नता मिलेगी, किस तरह की पत्नी शुभ व् सौभाग्यप्रद होगी आदि I चुनाव में परचा भरने , साक्षात्कार पर जाने, औषधि लेने या अंतरिक्ष यान छोड़ने का सही समय अष्टक वर्ग द्वारा सहज बनाया जा सकता है I मित्र सहयोगी के चयन में भी अष्टक वर्ग सहयोगी है I
ज्योतिष का मुख्य उद्देश्य जातक की शक्ति व दुर्बलताओं का आकलन करते हुए संभावित अनिष्ट से उसकी रक्षा करना है | ज्योतिषीगण भलीभाौँति जानते हैं कि सभी ग्रह अपने बल के अनुरूप ही अपनी दशा या भुक्ति में शुभ या अशुभ परिणाम दिया करते हैं। अत: सही फल कथन के लिए ग्रह का बल तथा बल का स्रोत जानना आवश्यक है |
प्राचीन विद्वान् मनीषियों ने ग्रह बल के छः स्रोत माने हैं जिन्हें षडबल कहा जाता है। ये निम्न प्रकार हैं-
]. स्थान बल 2. दिग्बल 3. कालबल 4. चेष्टा बल 5. नेसर्गिक बल 6. दृग्बल
पुनः भाव-बल जानने के लिए भावेश ग्रह बल, ग्रहों की दृष्टि से प्राप्त भाव-बल तथा भाक-दिग्बल का प्रयोग होता है। पडबल गणना पर स्व० डा० बी०वी० रमण तथा श्री वी०पी० जैन की पुस्तक सुन्दर, सुबोध व प्रभावशाली हैं । बहुधा पाठकों को फलित करने के लिए अन्य सन्दर्भ-ग्रंथों का सहारा लेना पड़ता है | इस कठिनाई को दूर करने के लिए प्रस्तुत पुस्तक में षडब॒ल गणना के साथ फल विचार के सूत्रों काभी समावेश किया गया है।
मेरे गुरुजन परम् पूज्य श्री वी०पी० जैन, श्री रंगाचारी तथा डाक्टर श्रीमती निर्मल जिन्दल ने अपने बहुमूल्य सुझावों द्वारा पुस्तक को पठनीय ही नहीं वरन् संग्रहणीय बनाया मैं उनका आभारी हूँ। मैं आभारी हूँ प्रोफेसर कुमार विवेकी का जिन्होंने षडबल सारिणी सहित उदाहरण कुंडलियाँ देकर बहुमूल्य योगदान किया ।
About the Book A Magnum Opus by one of the greatest astrologer duos of pretent limes; the Trivedis are at their best in this book. Any reader would be mesmerized...
Comprehensive Vedic Numerology (2 Volume set) [English] By Manoj Kumar Publisher: Alpha Publications "Comprehensive Vedic Numerology" (2 Volume Set) by Manoj Kumar is a detailed exploration of the principles and applications...
Brihaspati Dasha Phaldipika बृहस्पति दशाफल दीपिका को अग्रांकित २१ अध्यायों में व्याख्यायित और विभाजित किया गया है जिसमे बृहस्पति की महादशा के फल के साथ - साथ बृहस्पति की महादशा...
This book on Chara Dasa is especially revolutionary in the sense that the author has brought about too many new and hither to unknown vistas of Jaimini astrology with emphatic...