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Lakh Dukhon ki Ek Dava Dhyan [Hindi] by
Publisher: Oshodhara
लाख दुखो की एक दवा - ध्यान
संसार बदलता है, फिर भी बदलता नहीं I संसार की मुसीबते तो बानी ही रहती है I वहां तो तूफान और आंधी चलते ही रहेगे I अगर किसी ने ऐसा सोचा कि जब संसार बदल जाएगा तब मैं बदलूंगा, तो समझो कि उसने न बदलने की कसम खा ली I तो समझ लो उसकी बदलाहट कभी हो न सकेगी I उसने फिर तय ही कर लिया कि बदलना नहीं है, और बहाना खोज लिया I
दुनिया है तहलके में तो परवा न कीजिए,
यह दिल है रूहे- अस्र का मस्कन बचाइए I
तुम बाहर के अँधेरे से मत परेशान होना I उतनी ही चिंता और उतना ही श्रम भीतर की ज्योति को जलाने में लगा देना I यह जो भीतर ह्रदय है, जिसे बुद्ध ने चित्त कहा, जिसे महावीर, उपनिषद और वेद आत्मा कहते है, यह अस्तित्व का मंदिर है I अँधेरे की उतनी चिंता मत करिए I
दिल बुझ गया तो जानिए अँधेरा हो गया,
एक शाम आंधियो में है रोशन बचाइए I
वह जो भीतर ज्योति जल रही है जीवन की, वह जो तुम्हारा चैतन्य है, बस उसको जिसने बचा लिया, उसने सब बचा लिया I सम्राट होने का एक ही ढंग है, भीतर की संपदा को उपलब्ध हो जाना I वह जो भीतर का दिया है, चाहता है प्रतिपल उसकी बातो को सम्हालो, उकसाओ, उस बातो को उकसाने का नाम ही ध्यान है I मंदिर मस्जिदों में जाने से कुछ भी न होगा I मंदिर तुम्हारे भीतर है I प्रत्येक व्यक्ति अपना मंदिर लेकर पैदा हुआ है I कहा खोजते हो मंदिर को ? पत्थरो में नहीं है I तुम्हारे भीतर जो परमात्मा की छोटी सी लौ है, वह जो होश का दिया है, वहां है I
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