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आचार्य शंकर भगवत्पाद ने सौंदर्यलहरी की रचना कर भगवती के व्याज से श्रीविद्या की उपासना एवं महिमा , विधि, मन्त्र , श्रीचक्र एवं षट्चक्रों से उनका सम्बन्ध तथा उन षट्चक्रों के वेध रुपी ज्ञान के प्राप्ति का मार्ग हम मुमुक्ष जनों को दिखता है l
यह अत्यंत गूढ़ विषय था , जिसे श्रीमल्ललक्ष्मीधर ने 'लक्ष्मीधरा' व्याख्या के माध्यम से समस्त रहस्यों को हम साधकों पर अत्यंत कृपा करके प्रत्यक्ष रूप से प्रकाशित कर दिया है l