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लाओत्से - बुद्धिमता के सूत्र
क्या करणीय है और क्या अकरणीय है, इसका संकेत पल -प्रतिपल हमें कालचक्र से मिलता रहता है, परन्तु यह बात हममे से बहुत कम लोगो को समझ में आती है l बुद्धिमान व्यक्ति वही है जो कालचक्र के निर्देशों को समझता है किन्तु साधारण मनुष्य स्वार्थवश, परिस्थितिवश अथवा आत्मकेंद्रित हो अथवा लोभमोह में फँस जाता है, फलत: उसके निर्णय गलत हो जाते है, और वह सत्य से साक्षात्कार नहीं कर पाता, और ना ही परमानंद, ब्रह्मानंद की प्राप्ति कर पाता l
ज्योतिष, पूजा -पाठ, तंत्र -मंत्र, गुरु- शनि की अंगूठी, लाभ -शुभ, मुहूर्त और वास्तुशास्त्र में विश्वास करने से हम अपना आत्मविश्वास खोकर अपना भविष्य बिगाड़ लेते है, अपने मन से भविष्य के प्रति अश्रद्धा के स्पंदन से, विचलन से, अद्वेलन से हम अपना अहित स्वयं ही कर लेते है l भाग्य कभी ग्रह -नक्षत्रो से, हस्तरेखाओ से, ज्योतिषशास्त्रो से ज्ञात नहीं किया जा सकता अधिकाधिक अच्छे भावो से जीवन के समस्त कार्य - व्यापार निष्पादित करने से, सबके लिए मंगल की भावदशा रखने से, भाग्य अवश्य सुधर सकता है किन्तु स्वयं को सुधारे बिना भाग्य सुधारने का भी कोई उपाय इस दुनिया में नहीं है I
बयासी सूत्रों में समाहित 'लाओत्से -बुद्धिमता के सिद्धांत' में इस बात पर बल दिया गया है कि जो कार्य एक स्थान पर विशेष समय में अच्छा है, वही दूसरे स्थान पर दूसरे समय पर I
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