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प्राच्य चिकित्सा पद्धति में उपचार व्यक्ति का होता है रोग का नहीं
प्राच्य चिक्रित्सा पद्धति में ऐसी अंतर्दृष्टि विकसित किये जाने का महत्व जिससे अतीत के स्वरूपों को वर्तमान और भावी लक्षणों से तालमेल बैठाने में सहायता मिले । हमेँ रोग के किसी एक स्वरूप को अलग करके नहीं बल्कि पूर्णरूप से देखना चाहिए । यह स्मरण रखना चाहिए कि प्राच्य चिकित्सा प्रणाली से उपचार रोग का नहीं बल्कि रोगी का किया जाता है। किसी एक अंश या अंग का उपचार नहीं क्रिया जाता बल्कि सम्पूर्ण - व्यक्ति का उपचार किया जाता है। पश्चिमी चिकित्सा पद्धति में कारण और परिणाम के सिद्धांत की भूमिका महत्वपूर्ण होती है जबकि प्राच्य पद्धति में एक परिणाम (कार्य ) के कई कारण हो सकते है । अतः हमेँ प्रयास यहीं करना चाहिए कि हम मूल कारण को खोज लें।
Oriental Medicine treats the Person and not the Disease
In Oriental Medicine, it is important to develop intuition which helps to co-ordinate the past patterns with the present and future. One should not isolate any pattern but integrate it into the whole. One must remember in Oriental Medicine that one does not treat the disease but the person. One does not treat a part but the whole. In Western Medicine, cause and effect play an important role, whilst in Oriental Medicine, one effect can have many causes. Above all, one must try and find the root of the cause.
0.5kg | ₹40 |
1kg | ₹70 |
1.5kg | ₹110 |
2kg | ₹130 |
2.5kg | ₹138 |
3kg | ₹170 |
4kg | ₹175 |
5kg | ₹200 |
7kg | ₹270 |
10kg | ₹325 |
12kg | ₹420 |
15kg | ₹530 |
20kg | ₹850 |