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अवधूत गीता
अवधूत गीता के बारे में सद्गुरु ओशो सिद्दार्थ जी कहते है - ' जहा भगवद्गीता समाप्त होती है, वहां से अष्टावक्र गीता (अष्टावक्र संहिता ) शुरू होती है और जहा अष्टावक्र गीता समाप्त होती है, वहां से अवधूत गीता आरंभ होती है I इसी बात से 'अवधूत गीता' की मह्ता स्पष्ट है I स्वयं ओशो सिद्धार्थ जी के शब्दो में :-
कहते है दत्तात्रेय ब्रह्मा, आत्मा कहते है महावीर,
गौतम कहते है शून्य इसे, कहते है ॐ नानक कबीर I
भगवत्ता कहते है ओशो, वह तुम ही हो तो अहो I
भगवत्ता शरणम् गच्छामि, अवधूत शरणम् गच्छामि II
शब्दो में तुम मत खो जाना, सब संतो की है बात एक ;
आकारों में है जग उलझा, वह निराकार ओंकार एक II
गुरु कहो या कि गोविन्द कहो, वह तुम ही हो, तुम ही तो अहो
गोविन्दम शरणम् गच्छामि , अवधूत शरणम् गच्छामि II