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बैकुंठवासी गुरु चन्द्रभानु पाठक जी के दर्शन का सौभाग्य तो मुझे एक ही बार मिला था, पर उनकी शिष्या विजयलक्ष्मी जैन के कारण मै उनके बैकुण्ठवास तक उनके संपर्क में रहता था l मुझे यह जानकार ज्यादा प्रसन्नता हुई कि महाराष्ट्र के महान संत साहित्य का अनुवाद इन्होने स्वयं किया और अपने शिष्यों से भी करवा रहे थे l संत ज्ञानेश्वर कि अपूर्व और अतुलनीय ज्ञानेश्वरी , एकनाथी भागवत और अमृतानुभव का अनुवाद इन्होने स्वयं किया और अपने अंत के दिनों में इन्होने एकनाथी रामायण का अनुवाद अधूरा छोड़ दिया, यह आदेश देकर कि मै इस महान ग्रन्थ को जहाँ चाहे प्रकाशित करूँl
संतों के सानिध्य में काफी रहने के कारण यह आदेश एक आशंका भी थी और संकेत भी कि इनका अंतिम समय आ गया है और हिंदी भाषी इस महान ग्रन्थ के अध्ययन से वंचित न रहें , तो कोई तो इस ग्रन्थ को छपवाए l उनके आदेश को मन में रखते हुए और श्रद्धा के साथ इस ग्रन्थ के बाल काण्ड , अयोध्या काण्ड , अरण्य काण्ड , किष्किंधा काण्ड और सुन्दर काण्ड आपको समर्पित है l
0.5kg | ₹40 |
1kg | ₹70 |
1.5kg | ₹110 |
2kg | ₹130 |
2.5kg | ₹138 |
3kg | ₹170 |
4kg | ₹175 |
5kg | ₹200 |
7kg | ₹270 |
10kg | ₹325 |
12kg | ₹420 |
15kg | ₹530 |
20kg | ₹850 |