SURYA THE SUN GOD Author - KS Charak Sury the Sun God is a book that deals with the various aspects of the Sun not confined to astrology and astronomy...
Shri Narayan Kawach (229) [Hindi] By Gita Press श्री नारायण कवच (229) [हिंदी] - गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित हिंदी पुस्तक, जो श्री विष्णु भगवान के आशीर्वाद की खोज करने वाले भक्तों...
ललितासहस्ननाम ब्रह्माण्डपुराण का शीर्षक “ललितोपाख्यान' के रूप में है। ललितासहस्ननाम मूल रूप में कई स्थानों से प्रकाशित हुआ है। सर जान वुडरफ विल्सन ( एवलोन ) ने तांत्रिक ग्रन्थों में इसका अनेक स्थानों पर उल्लेख किया है। संस्कृत के अतिरिक्त अंग्रेजी में इसका भाष्य श्री आर० अनन्तकृष्ण शास्त्री ने किया है। तमिल में भी इसका भाष्य है। संस्कृत में इसकी परिभाषा 'सौभाग्यभास्कर' नाम से महान् मनीषी भास्करराय ने की है। सभी भाष्यों का आधार भास्कर- राय-प्रणीत सौभाग्यभास्कर है। इस स्तोत्र को अत्यधिक लोकप्रिय बनाने का श्रेय इन्हें ही है। इन्हीं का दीक्षा नाम भासुरानन्दनाथ है। प्रस्तुत हिन्दी व्याख्या पूर्णतया इन्हीं के भाष्य पर आधारित है । सर्वप्रथम 'सौभाग्यभास्कर का प्रकाशन निर्णयसागर प्रेस, बम्बई से हुआ था। “सौभाग्यभास्कर' का रचना काल संवत् १७८५ माना जाता है और इसे भास्कर राय ने बनारस में पूर्ण किया था ।
ललितासहस्ननाम में कुल मिलाकर ३२० (तीन सौ बीस ) श्लोक हैं और ये तीन भागों में विभाजित हैं। पूर्व भाग में ५१, द्वितीय भाग नामावली में १८२8 तथा उत्तर भाग फलश्रुति में ८६ श्लोक हैं । ब्रह्माण्ड- पुराण के उत्तरखण्ड में भगवान् हयग्रीव और महांमुनि अगस्त्य के संवाद .के रूप में इसका विवेचन मिलता है। यह पुराण महर्षि वेदव्यास रचित १८वाँ और अन्तिम पुराण है। इसका अवलोकन करने से स्पष्ट हो जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने इस पुराण में तंत्र को अत्यधिक महत्त्व दिया है।
.. ललितासहस्ननाम के पूर्व भाग, नामावली तथा फलश्रुति में अनेक बारश्रीविद्या और श्रीचक्र का उल्लेख है। सहस्ननाम के पारायण में भी श्रीविद्या
श्रीचक्र की उपासना पर बल दिया गया है । इसमें तनिक भी सन्देह नहीं के यह श्रीविद्या का मुख्य स्तोत्र है। पूर्द भाग तथा फलश्रुति के अनेक इसका स्पष्ट उल्लेख है। नामावली में देवी के जो नाम आये हैं उनमे चक्रराज की देवियों तथा अधिष्ठात्रियों के नाम