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मुखाकृति की अभिव्यक्तियाँ परिस्थितियों पर ही निर्भर नहीं होती, बल्कि किसी हद तक पैतृक भी होती है,माँ का जीवन सुखी और हर्सोल्लासपूर्ण हो तो उसके बालक के मुख पर भी उल्लास की अभिव्यकि अंकित हो जाती है जो जीवन प्रयन्त रहती है l माँ का जीवन दुःख भरा हो तो विषाद की अभिव्यकि उसके बच्चे के मुख पर देखीं जा सकती है l हर्सोल्लास के अवसर पर उसका चेहरा पूरी तरह नहीं खिलता l बच्चों के मन मस्तिक पर पैतृक प्रभाव स्थायी होता है l उसी के अनुरूप उसके स्वभाव का निर्माण होता है l
पैतृक मनोवृतिया मनुष्य के स्वभाव में समा जाती है l उसी की झलक मुखाकृति पर सदा बनी रहती है l उसी के अनुरुप शारीर की गठन होती है l
मनोविज्ञान वेता सदियों से मुखाकृतियों का विश्लेषण करते आये है l वर्तमान काल में मुख-विश्लेषण की प्रक्रिया में पर्याप्त परिपक्वता आ गयी हैl अब तो इसे मुखाकृति विज्ञानं (physiognomy) अब तो इसे मुखाकृति विज्ञानं के रूप में मान्यता भी मिल चुकी है l इसके सिद्धांत निश्चित हो चुके है l यदि उन सिद्धांन्तो के अनुसार किसी मुखाकृति का गंम्भीरता पूर्वक विश्लेषण किया जाय तो भुत, वर्तमान और भविष्य के सम्बन्ध में विश्लेषण का निष्कर्ष सही निकलता है l
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