Hindu astrology is sidereal. But in the West, most of the astrologers base their calculations and inferences on the tropical zodiac. To cater to their needs and to enable them...
ज्योतिष के संहिता, होरा और सिद्धान्त--इन तीन विषयों में जातकपारिजात का स्थान होरा के अन्तर्गत है।
यह बहुत प्राचीन ग्रंथ है। यह समस्त प्राचीन फलित ग्रंथों का सारभूत है। इसका निर्माण सर्वार्थचिन्तामणिकार वेंकटाद्रि के पुत्र श्री वैद्यनाथ ने विक्रम संवत् 482 में किया था। रचना मौलिक है किन्तु इसमें श्रीपतिपद्धति, तारावली, सर्वार्थचिन्तामणि, बृहज्जातक तथा अन्य पूर्ववर्ती ग्रन्थों का सार भी मिलता है।
जातकपारिजात के प्रारम्भिक आठ अध्याय, प्रथम भाग, अलग जिल्द में छपे हैं। प्रस्तुत कृति जातकपारिजात का द्वितीय भाग है। इसमें नौवें अध्याय से लेकर अठारहवें अध्याय तक के दस अध्याय आ गए हैं और ग्रंथ पूर्ण हो गया है।
इस भाग के अध्यायों का विवरण इस प्रकार है--नवम अध्याय में मान्दिफल का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। दशम अध्याय में अष्टकवर्ग का निरूपण है। जिस अष्टकवर्ग के निरूपण में ज्योतिर्विदों ने पुस्तकें भर दी हैं उसी का सार इसमें मिलेगा। किस जातक का कौन-सा वर्ष कैसा जाएगा---इसका इस अध्याय में विवेचन किया गया है। ग्यारह से पन्द्रह अध्यायों में भावफल पूर्णरूपेण कहे गए हैं। सोलहवें अध्याय में स्त्रियों की जन्मकुण्डली का स्पष्ट विवरण है। सत्रहवें अध्याय में कालचक्रदशा समझाई गई है। अन्तिम अठारहवें अध्याय में दशाफल का विचार और अन्तर्दशा का विस्तृत विवरण दिया गया है।
विषयविन्यास सरल एवं सुगम है। संस्कृत में मूल श्लोक, हिन्दी में सौरभ-भाष्य और स्थान-स्थान पर चक्र, कोष्ठक , कुण्डलियाँ और तालिकाएँ भी हैं।