जातकालंकार
फलितज्योतिष का विकास पुराणों में उध्दत व्यास - वशिष्ठ - नारदादि दैवज्ञों के वचनो के आधार पर ही हुआ है I प्रस्तुत ग्रन्थ "जातकालंकार " श्रीमदभागतोक्त जो जातक सम्बन्धी फल है उन्ही के आधार पर निर्मित है l इस विषय में ग्रंथकार की भी स्पष्टोक्ति है I यह ग्रन्थ सात अध्यायों में है जिसमे छ: अध्याय ज्योतिष सम्बन्धि और सातवाँ वंश वर्णन का है I इन सातो अध्यायों में श्लोको की संख्या क्रमश : ११-३७-३३-३-२२-८ और ४ है I इन सब का योग ११८ होता है जबकि ग्रंथकार ने छठे अध्याय में ११० श्लोक ही बताया है I संभवत: ग्रन्थ में जो ज्योतिष सम्बन्धि श्लोक नहीं है, उनको ग्रंथकार ने गणना में नहीं लिया है I ग्रन्थ के अंतर्गत आने
आर्युर्वेदीय नाडीपरीक्षा- विज्ञान आर्युर्वेदीय चिकित्सा का उद्देश्य है - व्याधिविशेष का सम्प्राप्ति - विघटन तथा प्रकृति - स्थापन l यहाँ मात्र रोगनामपूर्वक नहीं अपितु प्रकृति -विकृतिपरक सम्प्राप्ति -ज्ञानपूर्वक रोग- निदान करने का विधान है l वैध रोगी- रोग परीक्षा द्वारा प्रत्येक रोगी में उसके रोग...
तन्त्रम 'तंत्र ' एक विशाल और व्यापक शब्द है और उसी प्रकार उसका अर्थ भी है असीम व्यापक और विशाल I सम्पूर्ण विश्व में जितने भी धर्म है, जितने भी सम्प्रदाय है और जितनी भी...
वराह लल्लादी आचार्यों की कही हुई युक्तियों को देखकर प्राचीनों के वचनों से पवित्र और विचित्र वास्तुरत्नावली को अपनी बुद्धि के अनुसार मै बनाता हूँ l गृहस्थों के हित के लिए तथा...
बृहदवास्तुमाला ज्योतिष शास्त्र का अन्यतम अंग वास्तुविधा है ; इसका ज्ञान बृहत्संहिता, मुहूर्तचिन्तामणि, मुहूर्त्तमार्तण्ड, रत्नमाला, गृहभूषण, वास्तुमाला, वास्तुप्रबन्ध आदि ग्रंथो में विक्रीण है ; इस दृष्टि से 'बृहदवास्तुमाला' में उन...
Makrandprakash मकरंदप्रकाश का अर्थ है मधु का उजाला या मधु की किरणें। यह शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – मकरंद (जिसका अर्थ होता है मधु, फूलों का रस)...