Saundarya Lahari [Hindi] by SC Mishra (Suresh Chandra Mishra) Publisher: Pranav Publications माता भगवती त्रिपुरसुन्दरी लाड़ले पुत्र आदि शंकराचार्य को स्वयं भगवती ने अपना दूध पिलाकर सब विद्याओं में पारंगत होने का वरदान...
सौन्दर्य लहरी इसमें वर्षो से साधना पथ पर आगे बढ़ते हुए आपके सुपरिचित लेखक, मंत्र- तंत्र शास्त्रो के ग्रंथकर्ता, डॉ, रुद्रदेव त्रिपाठी साहित्य - सांख्य - योग - दर्शनाचार्य, काव्य...
ललिता सहस्त्रनाम (कुण्डलिनी संकेत विधा ) माँ ललिता सौंदर्य, अनुग्रह और आनंद की साक्षात् मूर्ति है l उनमे अगाध श्रद्धा और निष्ठां रखने वाले में भी ये गुण स्वभावत: ही...
Saundarya Lahari [Hindi] by Adiguru Shankaracharya Publisher: Randhir Prakashan सौन्दर्य लहरी जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा रचित एक ग्रंथ है जो संस्कृत भाषा में है तथा जिसमें 100 श्लोक (छंद) हैं। इसकी...
दुर्गा सप्तशती जगदम्बे की प्रेणना से दुर्गा सप्तशती पर आधारित यह पुस्तक देवी भक्तो के कल्याणार्थ प्रकाशित की गई है l इसमें मेरा कुछ भी नहीं है जो भी कुछ...
ललितासहस्ननाम ब्रह्माण्डपुराण का शीर्षक “ललितोपाख्यान' के रूप में है। ललितासहस्ननाम मूल रूप में कई स्थानों से प्रकाशित हुआ है। सर जान वुडरफ विल्सन ( एवलोन ) ने तांत्रिक ग्रन्थों में इसका अनेक स्थानों पर उल्लेख किया है। संस्कृत के अतिरिक्त अंग्रेजी में इसका भाष्य श्री आर० अनन्तकृष्ण शास्त्री ने किया है। तमिल में भी इसका भाष्य है। संस्कृत में इसकी परिभाषा 'सौभाग्यभास्कर' नाम से महान् मनीषी भास्करराय ने की है। सभी भाष्यों का आधार भास्कर- राय-प्रणीत सौभाग्यभास्कर है। इस स्तोत्र को अत्यधिक लोकप्रिय बनाने का श्रेय इन्हें ही है। इन्हीं का दीक्षा नाम भासुरानन्दनाथ है। प्रस्तुत हिन्दी व्याख्या पूर्णतया इन्हीं के भाष्य पर आधारित है । सर्वप्रथम 'सौभाग्यभास्कर का प्रकाशन निर्णयसागर प्रेस, बम्बई से हुआ था। “सौभाग्यभास्कर' का रचना काल संवत् १७८५ माना जाता है और इसे भास्कर राय ने बनारस में पूर्ण किया था ।
ललितासहस्ननाम में कुल मिलाकर ३२० (तीन सौ बीस ) श्लोक हैं और ये तीन भागों में विभाजित हैं। पूर्व भाग में ५१, द्वितीय भाग नामावली में १८२8 तथा उत्तर भाग फलश्रुति में ८६ श्लोक हैं । ब्रह्माण्ड- पुराण के उत्तरखण्ड में भगवान् हयग्रीव और महांमुनि अगस्त्य के संवाद .के रूप में इसका विवेचन मिलता है। यह पुराण महर्षि वेदव्यास रचित १८वाँ और अन्तिम पुराण है। इसका अवलोकन करने से स्पष्ट हो जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने इस पुराण में तंत्र को अत्यधिक महत्त्व दिया है।
.. ललितासहस्ननाम के पूर्व भाग, नामावली तथा फलश्रुति में अनेक बारश्रीविद्या और श्रीचक्र का उल्लेख है। सहस्ननाम के पारायण में भी श्रीविद्या
श्रीचक्र की उपासना पर बल दिया गया है । इसमें तनिक भी सन्देह नहीं के यह श्रीविद्या का मुख्य स्तोत्र है। पूर्द भाग तथा फलश्रुति के अनेक इसका स्पष्ट उल्लेख है। नामावली में देवी के जो नाम आये हैं उनमे चक्रराज की देवियों तथा अधिष्ठात्रियों के नाम
‘वक्रेश्वरी की भैरवी’ योग-तन्त्र-परक कथाओं का संग्रह है। यद्यपि ये अविश्वसनीय और असम्भव-सी लगेगी किन्तु स्वाभाविक भी है। आज के वैज्ञानिक युग में इन पर विश्वास करना मुश्किल है—इन्द्रियों की सीमा से परे घटित घटनाओं पर। इस भौतिक जगत में दो सत्ताएँ हैं—आत्मपरक सत्ता और वस्तुपरक सत्ता।वस्तुपरक सत्ता के अंतर्गत आने वाली वस्तुओं को तो प्रामाणित किया जा सकता है, लेकिन आत्मपरक सत्ता को नहीं। इसलिए कि आत्मपरक सत्ता की सीमा के अन्तर्गत जो कुछ भी है, उनका अनुभव किया जा सकता है, और उसकी अनुभूति की जा सकती है।
गायत्री मंत्र साधना व् उपासना गायत्री मन्त्र को वेदो में महामंत्र कहा गया है I इस महामंत्र में है - उपासना, स्तुति , ध्यान एवं वंदना का समन्वय I गायत्री...
आचार्य शंकर भगवत्पाद ने सौंदर्यलहरी की रचना कर भगवती के व्याज से श्रीविद्या की उपासना एवं महिमा , विधि, मन्त्र , श्रीचक्र एवं षट्चक्रों से उनका सम्बन्ध तथा उन षट्चक्रों...