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प्राचीन त्रैलोकिय ज्योतिष शास्त्र
यह त्रैलोकिय ज्योतिष शास्त्र ग्रन्थ अति प्राचीन है I 700 वर्ष पहले पूज्य श्री हेमप्रभसूरीजी नाम के जैनाचार्य हुए , उन्होंने यह उत्तम ग्रन्थ की रचना की है I
जैनाचार्यो ने साहित्य के क्षेत्र में जो योगदान किया है, उतना अन्य किसी भी सम्प्रदाय के आचार्यो ने नहीं किया है I वैसे श्री जैन धर्म में आध्यात्मिकता की प्रधानता है और वास्तव में आध्यात्मिकता की ही प्रधानता है , अत: इस विषय में जैन दर्शन में काफी पुस्तक विधमान है I फिर भी व्याकरण, साहित्य, न्याय, ज्योतिष, स्वरविधा, अंगविधा इत्यादि विषय में भी जैनाचार्यो ने काफी ग्रन्थ निर्माण किए है I उसमे से यह भी एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है I
ज्योतिष में एक प्रश्न -फलादेश का भी विषय है, मनुष्य को अपने जीवन में नाना प्रकार के प्रश्न परेशान करते है और उन प्रश्नो के उत्तर पाने की जिज्ञासा भी मनुष्य को होती है I इसके समाधान में प्रश्न लग्न बहुत ही सहायक बनता है I अत : इस ग्रन्थ में ग्रन्थकार ने लग्न का महत्व एवं किस प्रकार के प्रश्न लग्न में कौन - कौन भाव में रहे हुए सूर्यादि ग्रह के आधार पर कैसे - कैसे उत्तर देना चाहिए इस बात की सूक्ष्मातिसूक्ष्म विचारणा इस ग्रन्थ में की है I 1300 श्लोक प्रमाण विशालकाय इस ग्रन्थ में यह एक ही विषय पर गहराई से समझाने का भारी प्रयत्न किया है I
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