जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म जहाँ भारतीय धर्म एवं संस्कृति की मूल भित्ति हैं वहीं अपने आप में अत्यन्त गूढ़ गोपनीय और रहस्यमय हैं। प्रारम्भ से ही इनके तिमिराच्छनन विषयों के...
यह जगत स्वयं अपने आप में प्राकृतिक घटना है और हमारा जीवन उस घटना का विस्तार है। उस विस्तार में कभी-कभी ऐसी घटनाएं घटती हैं जो अपने आप में अविश्वसनीय...
आवाहन
भारत में प्राचीनकाल से ही देवी - देवताओ और सिद्ध, महापुरुषों की छवि के साथ- साथ चक्राकार प्रभामंडल प्रदर्शित किया जाता रहा है I इनके चित्रों को और उसमे प्रभामंडल को देखकर सामान्यत: लोग यही समझते है कि यह उनकी शोभा के लिए और काल्पनिक रूप से महत्ता बताने के लिए दिया गया है I यह भी कहा जाता है कि सन्त- महात्माओ और सिद्ध योगियों के पास जाते ही वे एक ही नजर में लोगों को पहचान लेते है तथा बाधा व्याधियों के बारे में सही - सही जानकारी देते है I सिद्ध पुरुषो के ऐसे चमत्कारी प्रभाव से विद्वान और वैज्ञानिक अछूते नहीं रहे है I साधु- संतो के द्वारा प्रदर्शित ऐसी चमत्कारी घटनाओ को कुछ लोग धार्मिक
'तीसरा नेत्र” का द्वितीय खण्ड आपके समक्ष प्रस्तुत है। इस 'खण्ड' के विषयों को संकलित करने में विशेष रूप से किसी प्रकार की समस्या उपस्थित नहीं हुई। लेकिन संकलन काल में अनेक प्रकार की जिज्ञासाओं का उदय अवश्य हुआ हृदय में। पिताश्री अरुण कुमार जी शर्मा द्वारा उन महत्वपूर्ण जिज्ञासाओं का समाधान अति आवश्यक था। इसके लिए सर्वप्रथम मैंने अपनी प्रमुख जिज्ञासाओं की प्रश्न रूप में एक सूची बनाई और उसे पिताश्री के सम्मुख प्रस्तुत की। उन्होंने सूची देखकर कहा- ऐसे नहीं होगा। जिज्ञासा गम्भीर है अपने आपमें। तुम प्रश्न करो, और मैं उसका समुचित उत्तर दूंगा। यह सुनकर प्रसन्नता हुई मुझे | एक दिन अवसर देखकर मैंने पूछा- हिमालय और तिब्बत यात्रा काल में आपने जिन सिद्ध साधकों और सन्त-महात्माओं का दर्शन लाभ किया | उनसे आपका साक्षात्कार पूर्वनियोजित था अथवा उसे संयोग मात्र कहा जाएगा ? सब कुछ पूर्व नियोजित होता है | उसके अनुसार जब भौतिक रूप में घटना घटती है तो उसे संयोग कहते हैं | क्या उन महान और दिव्य पुरुषों का अस्तित्व आज भी है?
.. अवश्य! | पिताश्री ने कहा- अतीत में भी था और भविष्य में भी रहेगा उनका अस्तित्व | क्या उनका दर्शन और उनका सानिध्य लाभ सभी के लिए संभव नहीं है ? नहीं , वही व्यक्ति ऐसे महात्माओं के सम्पर्क में आ सकता है, उनका सानिध्य लाभ कर सकता है और उनका दर्शन लाभ भी कर सकता है , जसमें पिछले कई जन्मो का साधना सस्कार प्रसुप्त अवस्था द्यमान हैं। उसी प्रसुप्त संस्कार के उन्मेष से आत्मा
प्रस्तुत कथा संग्रह में आप जो कुछ भी पढ़ेंगे, निश्चय ही कुछ प्रसंगों और कुछ घटनाओं पर आपको सहसा विश्वास नहीं होगा। यह स्वाभाविक भी है। मनुष्य उसी विषय वस्तु...
गुरुजी की काफी दिनों से इच्छा रही ज्योतिष पर पुस्तक लिखने की जो २००८ में कालपात्र नाम से पूर्ण हुआ | उनका कहना था कि ज्योतिष का सम्बन्ध जितना देश काल पात्र से है उतना ही योग और तंत्र साधना से भी है। गुरुजी का ज्योतिष शास्त्र पर पुस्तक लिखने का उद्देश्य था कि जन सामान्य व प्रबुध्द पाठकगण ज्योतिष शास्त्र से सम्बन्धित विषयों का ज्ञान हो तथा अपने जीवन में उसका सद्पयोग करें | गुरुजी ने योग-तंत्र के साथ-साथ ज्योतिष शास्त्र पर भी गहन शोध किया और सामान्य भाषा में प्रस्तुत करने का भरसक प्रयास भी किया। उनका कहना था कि वेदों के समान भारतीय ज्योतिष शास्त्र की प्राचीनता है और है महत्व । अथरव॑वेद के ६५ ऋचाओं में ज्योतिष सम्बंधित ज्ञान वर्णित है देखा जाए तो सम्पूर्ण ज्योतिष शाश्त्र सूर्या, चंद्र , और नक्षत्रों के सूक्ष्म अवलोकन पर ही आधारित है
भारतीय प्रज्ञा ने सर्वप्रथम नक्षत्रों तथा उनके संचरण और उनके ऊर्जा के प्रभाव को अपने शोध और खोज का आधार माना |
... भारतीय प्रज्ञा के मतानुसार ज्योतिष शास्त्र खगोलीय ज्ञान का महत्वपूर्ण अंग है। इसके बिना ग्रहों की वास्तविकता और उससे सम्बन्धित गहन सत्य को प्रगट नहीं किया जा सकता है
अभौतिक सत्ता में प्रवेश अभौतिक सत्ता में केवल भाव है, भावना है, अनुभूतियाँ है - जिनको प्रमाणित नहीं किया जा सकता I उसी प्रकार जैसे आप सपने में घटी घटनाओ...
प्रस्तुत पुस्तक आकाशचारिणी जो मेरे जीवन का अनुभवपूर्ण व सत्य घटनाओं पर आधारित कथा संग्रह है। प्रस्तुत कथा संग्रह में आप जो कुछ भी पढ़ेंगे, निश्चय ही कुछ प्रसंगों और...
पुस्तक का नाम 'मारणपात्र' क्यों ? यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है | वास्तव में तंत्र की भाषा में मनुष्य की खोपड़ी को 'महापात्र' कहते हैं | तन्त्र के षट्कर्म साधन...